Sunday, June 8, 2014

रामराय जी का आचार्य गरीब दास जी महाराज की शरण में आना

तेरी क्या बुनियाद है, जीव जन्म धर लेत ।
गरीबदास हरी नाम बिन, खाली परसी खेत ।।
एक बार एक महापुरुष जो की गरीब दास जी महाराज जी के शिष्य थे घूमते-२ बासियर ग्राम में आ पहुंचे यह ग्राम पंजाब में सुनाम शहर के पास हैवहाँ जाकर वह साधु एक तालाब के पास बैठ गएसंध्या का समय था, रात गुजरी सुबह हुईउस महापुरुष ने स्नान आदि किया और बह्रम महूर्त में बह्रम वेदी का पाठ करने लगाऔर बाद में कुछ शब्द “राग बिलावल” व “राग आसावरी” से भी गायेइसी समय उस ग्राम का प्रधान तलाब पर स्नान करने आया हुआ थामहाराज की वाणी सुनकर प्रधान का मन भी उस महापुरुष की तरफ खींचा चला गया प्रधान ने बैठ कर पाठ सुना और  जब महापुरुष ने पाठ पूरा किया तो प्रधान ने पूछा कि “स्वामी जी आपने यह अमृतमई वाणी  कंहाँ से प्राप्त की ? क्या यह आपके आपने अनुभव कि है”

Saturday, May 24, 2014

कबीर दास जी महाराज का छुड़ानी धाम में प्रकट होना


अलल पंख अनुराग है, सुन्न मण्डल रहे थीर |

दास गरीब उधारिया, सतगुरु मिले कबीर ||

                                                                                                                                          अनंता-अनन्त अखिल ब्रह्मंड नायक ज्योत सत्पुरुष सतगुरु श्री.श्री.१००८ गरीब दास जी महाराज ने श्री छुड़ानी धाम जिला झज्जर तहसील बहादुरगढ़ हरियाणा में अवतार लिया| जब आचार्य गरीब दास जी महाराज १० वर्ष की आयु के थे तब उनको परमपिता परमेश्वर सत्पुरुष सतगुरु कबीर साहिब जी महाराज ने दर्शन दिए थे| बात  वि०सं० १७८४ फाल्गुन शु० दवाद्शी की है जब रोजाना की तरह आचार्य गरीब दास जी महाराज गायें चराने खेतो में गए हुए थे| तब वह गायो को अपने और साथियों को सोप कर ध्यान लगा कर एकांत में बैठ गए|

Monday, May 19, 2014

भक्त निर्मल दास की दिव्य दृष्टि खुलना


                                                                  गरीब काया माया खंड है, खंड राज और पाट |
             अमर नाम निज बंदगी, सतगुरु से भई साट ||
                                      एक बार की बात है कि आचार्य श्री.श्री १००८ गरीब दास जी महाराज बाहर पिली जोहड़ी के खेत में बैठे ज्वार का गन्ना चुस रहे थे उसी वक्त वंही पर उनका एक भक्त श्री निर्मल दास बैठा हुआ था वह आचार्य श्री.श्री १००८ गरीब दास जी महाराज के द्वारा चुसे हुए गन्ने की झूठन को उठा कर चूस रहा था |तभी उस भाग्यवान महापुरुष(भक्त) की दिव्य दृष्टि खुल गयी

Saturday, May 17, 2014

सतगुरु भूरीवाले जी महाराज की लीला

तुम साहिब तुम संत हौतुम सतगुरु तुम हंस |
 गरीबदास तुम रूप बिन, और न दूजा अंस ||

एक समय की बात हैं सतगुरु भूरीवाले जी महाराज छुड़ानी धाम में गरीब दास जी महाराज के दरबार की सेवा करवा रहे थे | तभी छुड़ानी धाम का एक आदमी (भक्त मोजीराम जो की माता रानी के पिता श्री.शिवलाल जी के ही परिवार से था) सतगुरु भूरीवाले जी महाराज के पास आया

Sunday, March 2, 2014

श्री छुड़ानी धाम का मेला


                   गरीब धन जननी धन भूमि धन, धन नगरी धन देश I
                        धन करनी धन कुल धन, जंहाँ साधू प्रवेश II





              भारत की पवित्र भूमि प्राचीन काल से ही ऋषि मुनियों व अवतारों के लिए प्रसिद्ध हैं जब संसार में लोग धर्म का साथ छोड़ रहे थे और अधर्म को अपना रहे थे जब धरती पापियों के अत्याचार से कांप रही थी तब सन १७१७ में अनंता-अनन्त अखिल ब्रह्मंड नायक ज्योत सत्पुरुष सतगुरु कबीर दास जी महाराज ने  आचार्य श्री.श्री.१००८ गरीब दास जी महाराज के रूप में श्री छुड़ानी धाम जिला झज्जर तहसील बहादुरगढ़ हरियाणा में अवतार लिया I




Tuesday, February 18, 2014

श्री छुडानी धाम की गाथा

श्री छुड़ानी धाम प्राचीन काल से ही बड़ा पवित्र स्थल रहा है यँहा सत्पुरुष सतगुरु कबीर साहिब जी महाराज ने  श्री.श्री.१००८ आचार्य गरीब दास जी महाराज के रूप में जन कल्याण के लिए अवतार लिया था पर यह भूमि उससे पहले भी बहुत उतम थी I

Tuesday, February 12, 2013

सतगुरु भूरीवालों के बाल अवस्था के कौतक (सर्प द्वारा छाया)


सतगुरु भूरीवालों के बाल अवस्था के कौतक (सर्प द्वारा छाया)

कबीरा क्यों मैं चिंत हूँ मम चिन्ते क्या होये,
मेरी चिंता हरी करें चिन्ता मोहे न कोये!

सतगुरु भूरीवालों का जन्म विक्रमी  सम्मत १९१९ में भाद्रपद कृष्ण पक्ष अष्टमी (श्री कृषण अष्टमी) में हुआ, और सत्गुरों में आस्था रखनेवाले भगत जन श्री कृष्ण जी का ही अवतार मानते हैं! आप विख्यात भारत में अपने तेजस्व से अनंत श्री विभूषित  संत शिरोमणि स्वामी ब्रह्म्सागर  जी महाराज भूरीवालों के नाम से सुप्रसिध हुये! आप की बाल अवस्था से ही लोगों को ऐसे-ऐसे करिश्मे देखने नसीब हुए लेकिन भोले लोग तब यह -  समझ सके!

Monday, February 11, 2013

गाव दहेडू के भक्त रामजी दास की कथा

बाबा गरीबदास जी की वाणी द्वारा रचित यह शलोक  हम सब जीवों पर लागू होता है I

गुर बिन माला फेरते , गुरु बिन देते दान I
गुर बिन दान हराम है , पूछो  वेद  पुराण II

 हम चाहें जितनी भी भक्ति कर लें पूजा पाठ कर लें परन्तु जब तक हमारे पास पूरण गुरु का साथ नहीं और उनका आशीर्वाद नहीं होगा तब तक हम जनम और मरण के चक्रों से नहीं बच सकते I इसी कथन को सिद्ध करती कथा है, खन्ना शहर से चार मील की दुरी पर स्थित दहेडू गाँव के पंडित राम जी दास की I

Tuesday, July 24, 2012

महाराज भुरीवालो का कृष्ण स्वरूप धारण करना

            सतगुरु भुरीवालो के मोजुदा गद्दी नशीन वेदांत आचार्य महाराज चेतना नंद जी भूरीवाले ( काशिवाले ) भी अक्सर अपने प्रवचनों मै कहते है

जरे जरे में है झांकी भगवान की , किसी सूझ वाली आँख ने पहचान की I

कुछ ऐसा ही वाक्य है गाव चौंदा का I   जँहा महाराज भूरीवाले अक्सर जाया करते थे I गाव चौंदा की कुटिया में एक विशाल व अधियात्मिक विस्तृत बोहड़ का पेड़ था I एक बार  महाराज भूरीवाले उस वृक्ष के नीचे भगवत चिन्तनं कर रहे थे की

Tuesday, December 6, 2011

निर्गुण सर्गुण


आचार्य श्री गरीबदास जी की वाणी को जब कोई पहली बार पढ़ता है तो कुछ लोगों को वाणी में कुछ विरोधाभासी बातें दिखाई देती हैं । उदाहरण के लिए महाराज जी निर्गुण और सरगुण के बारे मे ‘ब्रह्म कला’ में कहते हैं ।

निर्गुण सरगुण दहूँ से न्यारा, गगन मंडल गलतानं | निर्गुण कहूँ तो गुण किन्ह कीने, सरगुण कहूँ तो हानं ||४७||

जिसका शाब्दिक अर्थ है की परमेश्वर निर्गुण और सरगुण दोनों से अलग है वह आकाश की तरह सर्व व्यापक है । अगर परमेश्वर को निर्गुण कहता हूं तो यह प्रशन उठता है की जब वह खुद ही निगुर्ण है तो उससे गुण कैसे उत्पन्न हुए ? और अगर परमेश्वर को गुणों से युक्त कहता हूं तो परमेश्वर की हानि होती है ।
इसी विषय पर ‘आदि रत्न पुराण योग’ में कहते हैं ।
गरीब, निर्गुण सरगुण एक है, दूजा भ्रम विकार | निर्गुण साहिब आप है, सरगुण संत विचार ||८७||

Monday, April 25, 2011

श्र्रदांजलि स्वामी ब्रह्मानन्द जी भुरीवाले (तृतीय)-ब्रह्मलीन

[यह लेख सन २००२ में प्रकाशित गरिब दासी पंथ की प्रमुख त्रेमासिक पत्रिका जगद्गगुरु श्री गरिबदासाचार्य जी कल्याणकारी उपदेश से लिया गया है जो की गरीबदासीय शिरोमणि ट्रस्ट ,छतरी साहिब,छुडानी धाम ,जिला झज्जर (हरियाणा )द्वारा संचालित की गई है ]


Sunday, April 17, 2011

मन ही बंधन और मोक्ष का कारण

मन एव मनुष्याणां कारणं बन्धमोक्षयोः ।

मन ही मनुष्य के बंधन और मोक्ष का कारण है । जब मन संसारिक विषयों में डुबा (आसक्त) होता है तो बंधन का कारण होता है और विषयों से रिहत होने पर मुक्ति दिलाता है । मन को विषयों से रिहत करने के लिए इसे जितना पडता है । जिस ने मन को जीत लिया उसने सारा जग जीत लिया। लेकीन इस मन को जीतना बडा ही मुश्कील काम है। यह मन बहुत ही चंचल और बलवान है । एक क्षण में यहां है तो दुसरे ही क्षण विश्व के दुसरे कोने में पहुंच जाता है । गीता में अर्जुन भगवान श्री कृष्ण से कहते हैं की

Saturday, March 26, 2011

सतगुरु भुरीवाले भक्त के लिए टिकट कोल्लेक्टर बने

भगवान भक्त के वश में होते हैं अगर भक्त सच्चे मन और श्रद्धा भाव से भगवान का स्मरण करते हैं तो भगवान उसके वश में हो जाते हैं। पांडवों ने सच्चे भाव से भगवान की पूजा की जिससे श्रीकृष्ण उनके वश में हो गए और सारथी बनकर युद्ध में उनकी सहायता की। इस बात को आचार्य बाबा श्री गरीब दास जी भी अपनी बाणी में प्रतिपादित करते है :-

गरीब लख छलिछद्र मैं करूं अपने भक्तों काज |
हिरणाकशय से मार हूं नर सिंह धार हू साज ||

सतगुरु भुरीवालों का एक परम सेवक तथा भक्त श्री नराता राम जो की ग्राम चौंदा का रहने वाला था और लुधियाना रेलवे विभाग में टिकट कोल्लेक्टर के पद पर काम करता था |वेह सतगुरु भुरीवालों द्वारा बताए नित्य नियमों का पालन करता था तथा साथ साथ अपनी ड्यूटी भी किया करता था |

Friday, September 17, 2010

बाबा गरीबदास जी द्वारा भूखे शेर की मुक्ति

भारतवर्ष सन्तों की भूमि होने के कारण जगत प्रसिद रहा है , सन्तों की भूमि होने के कारण यहाँ की मिटटी पूजने लायक है सन्तपुरुषों के इस देश में एक अति विख्यात सन्त हुए जिनको हम आचार्य श्री गरीबदास जी ने नाम से जानते हैं आचार्य श्री गरीबदास जी ने समय-समय पर परचे देकर ,लोगों को भक्ति के मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित किया आचार्य श्री ने लोगों के कल्याण हेतु अमृतमयी वाणी कि रचना की जिसके पाठ करने मात्र से कितने ही लोग भवसागर पार कर गए

Friday, August 20, 2010

डाकू सुजान को महाराज गरीबदास जी द्वारा उपदेश

सतगुरु गरीबदास जी ने अपने काल में कई पापी,दुराचारी लोगो का जीवन ही बदल दिया | उन्होंने डाकू और कातिलों को अपनी बानी द्वारा जक्झोड दिया तथा उनका जीवन ही बदल डाला| महापुरष स्वः ऐसा ही करते है |ऐसा ही कुछ हुआ डाकू सुजान के साथ |
एक समय सतगुरु महाराज आचार्य गरीबदास जी अपनी घोड़ी पर सवार हो कर कही से आ रहे थे , उनके साथ कुछ सेवक भी थे | रास्ते में भाटगाव का डाकू सुजान सिंह आपने दल -बल सहित सामने से आ रहा था | उसने देखा की ये कोई घोड़ी वाला बड़ा आदमी दीखता है क्योकि उस समय किसी गणमान्य व्यक्ति के पास ही घोड़ी होती थी | इसलिए सतगुरु जी को कोई बड़ा साहूकार समझकर उसने दूर से ललकारा कि वही पर रुक जाओ ,जो तुम्हारे पास है ,उसे उतार कर एक तरफ हट जाओ परन्तु सतगुरु जी तो निर्भय थे | उनके मन में किसी भी प्रकार का भय उत्पन नहीं हुआ तथा वे चलते रहे | गुरु ग्रन्थ साहिब जी में गुरु तेग बहादुर जी ने नौवे मोहल्ले में लिखा है :-

भय काहू को देत नहीं ,न भय मानत आन |
कह नानक सुन रे मना ,सो मूरत भगवान ||

आचार्य जी स्वय अपने मुखारबिंद से कहते है :-
दास गरीब अभय पद परसे ,मिलै राम अविनाशी |

Monday, July 19, 2010

सतगुरु कबीर रूप में प्रकट हुए आचार्य गरीबदास जी

सतगुरु समय समय पर अपना रूप बदल बदल कर इस धरातल पर अपने हँसो को पार लगाने के लिए आते है इसी तरह कबीर और गरीब में कोई फरक नहीं वेह ही सृष्टि के मालिक सतगुरु सच खंड के मालिक सभी रूपों में वास करने वाले है इसी बात को स्वामी रामानंद जी ने कबीर जी से कहा वेही वाक्य जगत गुरु बाबा गरीबदास जी ने अपने वाणी में युह बयां किया है ...

बोलत रामानंदजी, सुन कबीर करतार। गरीबदास सब रूपमैं, तुमहीं बोलन हार।।
तुम साहिब तुम संत हौ, तुम सतगुरु तुम हंस। गरीबदास तुम रूप बिन और न दूजा अंस।


सतपुरुष सतगुरु कबीर साहिब जी के ६४ हजार शिष्य थे जिनमे से अर्जुन- सुर्जन यह एक ऐसे नाम है । जिन का बाबा गरीबदास जी के पूर्व जन्म(कबीर साहिब )में बहुत महत्वता है । यह बड़ी ही विलक्षण बात है की वह दो व्यक्ति जो सतगुरु कबीर साहिब जी के जीवन से लेकर बाबा गरीबदास के जीवन तक उपस्थित थे जबकि इन दोनों के जीवन काल में २६० वर्ष का अंतर है।

Sunday, July 11, 2010

आचार्य श्री गरीब दास जी महाराज का जीवन परिचय

आचार्य श्री गरीब दास जी महाराज का जीवन परिचय
सतगुरु संत और अवतार तीन कला एके दरबार
जगतगुरु आचार्य श्री गरीबदास महाराज जी का अवतार इस कलयुग में भटक चुके लोगों को परमेश्वर प्राप्ति का सही मार्ग दिखाने के लिये छुडानी में हुआ आप कबीर पंथ के महान संत, महान योगी, महान कवी हुए आप जी की इस जगत को सब से बड़ी देन आप जी की पवित्र वाणी है जो की “श्री ग्रन्थ साहिब” के नाम से प्रचलित है इसमे आप जी ने लगभग १८०० दोहों की रचना की है इतनी बड़ी मात्र में विभिन्न भाषाओं के शब्दों का प्रयोग करते हुए शायद ही किसी महापुरुष ने वाणी की रचना की हो आप की पवित्र वाणी को पढ- सुनकर, विचारकर ना जाने कितने ही जीवों का उद्धार हो चूका है और आगे भी होता रहेगा जहां एक तरफ आप ने परमेश्वर प्राप्ति के लिये नाम स्मरण, भक्ति और ज्ञान मार्ग का उपदेश दिया वहीं दूसरी तरफ समाज में फैली बुराइयों का जम कर विरोध भी किया आप हिंदू मुसलिम सब को एक सामान, उस एक परमात्मा की संतान मानते थे
आप हमेशा तुरिया अवस्था में लीन रहते थे और आप जी के श्री मुख से सहज ही वाणी प्रकट होती रहती थी
आप जी से ही गरीब दासी पंथ की शुरुवात हुई जो आज भारत के अनेक राज्यों में पसर चूका है

Saturday, June 12, 2010

ਮਹਰਾਜ ਭੂਰੀਵਾਲੇ ਜਦੋ ਪਹਲੀ ਵਾਰ ਮਾਲੇਵਾਲ ਆਏ

ਮਹਾਰਾਜ ਭੂਰੀਵਾਲੇ ਲੁਧਿਆਣਾ ਕੁਟਿਆ ਵਿਚ ਸੰਤ ਮੰਡਲੀ ਨਾਲ ਮਜੂਦ ਸੰਗਤ ਨੂੰ ਦਰਸ਼ਨ ਦੇ ਰਹੇ ਸਨ, ਉਸ ਵੇਲੇ ਗੁਜਰ ਬਰਾਦਰੀ ਵਿਚੋ ਚੌਧਰੀ ਮੁਨਸ਼ੀ ਰਾਮ , ਚੌਧਰੀ ਸਾਧੂ ਰਾਮ ਅਤੇ ਚੌਧਰੀ ਮੋਲੂ ਰਾਮ ਮਹਾਰਾਜ ਜੀ ਕੋਲ ਆਏ I ਦੰਡਵਤ ਪਰਨਾਮ ਕਰਨ ਤੋ ਬਾਅਦ ਚੌਧਰੀ ਮੁਨਸ਼ੀ ਰਾਮ ਜੀ ਨੇ ਮਹਾਰਾਜ ਜੀ ਅਗੇ ਬੇਨਤੀ ਕੀਤੀ ਕੀ ਮਹਾਰਾਜ ਜੀ ਸਾਡਾ ਇਲਕਾ ਬਹੁਤ ਗਰੀਬ ਅਤੇ ਆਵਾਜਾਈ ਸਾਧਨਾ ਤੋ ਵਹੀਂਨ ਹੈ I ਬਚੇ ਅਤੇ ਸੰਗਤ ਆਪ ਜੀ ਦੇ ਦਰਸ਼ਨ ਕਰਨਾ ਦੀ ਇਛਾ ਰਖਦੇ ਹਨ ਸਾਡੇ ਤੇ ਅਤੇ ਸੰਗਤ ਤੇ ਕਿਰਪਾ ਕਰੋ I ਕੁਛ ਦੇਰ ਚੁਪ ਰਹਿਣ ਤੋ ਬਾਦ ਮਹਾਰਜ ਜੀ ਨੇ ਤਸਲੀ ਦਿਤੀ ਕੀ ਜਰੂਰ ਚਾਲ੍ਨਾਗੇ ! ਮਹਾਰਾਜ ਜੀ ਨੇ ਸੰਤਾ ਨੂੰ ਬੁਲਾ ਕੇ ਕਿਹਾ ਕੀ ਤੁਸ੍ਨੀ ਆਪਣਾ ਸਮਾਨ ਬਨ ਲਾਓ ਅੰਸੀ ਕਲ ਨੂੰ ਮਾਲੇਵਾਲ ਜਾਣਾ ਹੈ I
ਮਹਾਰਾਜ ਸਵੇਰੇ ਜਲਦੀ ਹੀ ਚਲ ਪਾਏ, ਮਹਾਰਾਜ ਜੀ ਫ਼ਗਵਾੜਾ ਤਕ ਬਸ ਵਿਚ ਗਏ ਅਤੇ ਉਸ ਤੋ ਬਾਦ ਰੇਲ ਰਾਂਹੀ ਗੜਸ਼ੰਕਰ ਪਹੁਚੇ I ਮਹਾਰਾਜ ਜੀ ਦੇ ਉਥੇ ਆਉਣ ਤੇ ਸੰਗਤ ਬਹੁਤ ਜਿਆਦਾ ਮਾਤਰਾ ਵਿਚ ਆ ਗਈ I ਮਹਾਰਾਜ ਜੀ ਦੇ ਨਾਲ ਦੋਨੋ ਸ਼੍ਰੀ ਮਹਾਂਨਤ ਵੀ ਸਨ ਸੰਗਤ ਨੇI ਮਹਾਰਾਜ ਜੀ ਵਾਸਤੇ ਪਾਲਕੀ ਦਾ ਪ੍ਰੰਬਧ ਕੀਤਾ ਹੋਇਆ ਸੀ, ਜਦੋ ਮਹਾਰਾਜ ਜੀ ਗੜਸ਼ੰਕਰ ਤੋ ਮਾਲੇਵਾਲ ਲਈ ਚਲੇ ਤਾਂ ਰਸਤੇ ਵਿਚ ਜੋ ਵੀ ਮਹਾਰਾਜ ਜੀ ਦੇ ਦਰਸ਼ਨ ਕਰਦਾ ਉਹ ਨਿਹਾਲ ਹੋ ਜਾਂਦਾਂ ਉਸ ਵੇਲੇ ਇਸ ਤਰਾਂ ਪ੍ਰੀਤੀਤ ਹੋ ਰਿਹਾ ਸੀ ਜਿਸ ਤਰਾਂ ਦੇਵਤੇ ਧਰਤੀ ਤੇ ਉਤਰ ਆਏ ਹੋਣI ਜੋ ਵੀ ਦਰਸ਼ਨ ਕਰਦਾ ਉਹ ਮਹਰਾਜ ਜੀ ਨਾਲ ਹੀ ਚਲ ਪੇੰਦਾਂ I ਮਹਾਰਾਜ ਜੀ ਪੀਛੇ ਸੰਗਤ ਇਕ ਵਿਸ਼ਾਲ ਸ਼ੋਭਾ ਯਾਤਰਾ ਦਾ ਰੂਪ ਲੈ ਚੁਕੀ ਸੀ I ਮਹਾਰਾਜ ਜੀ ਦੇ ਅਗੇ ਬੇੰਡ ਵਾਜੇ ਵਾਲੇ ਚਲ ਰਹਿ ਸੀ I ਮਹਾਰਾਜ ਜੀ ਦੇ ਪੀਛੇ ਸੰਗਤ ਬਾਣੀ ਦੇ ਸ਼ਬਦ ਗਾ ਰਹਿ ਸਨ ਜੋ ਵੀ ਮਹਰਾਜ ਜੀ ਵਲ ਦੇਖਦਾ ਉਹਨਾ ਦੇ ਚੇਹਰੇ ਦੇ ਰੂਪ ਨੂ ਦੇਖਦਾ ਹੀ ਰਹ ਜਾਂਦਾ I

Monday, June 7, 2010

ਪੀਰ ਬਾਬਾ ਸ਼ੋੰਕੇ ਸ਼ਾਹ ਦੀ ਕਥਾ

                                             ਇਸ ਪਾਵਨ ਅਸਥਾਨ ਰਕ਼ਬਾ ਸਾਹਿਬ ਦੀ ਸੋਭਾ ਸ਼ਬਦਾ ਨਾਲ ਬਿਆਨ ਨਹੀ ਕੀਤੀ ਜਾ ਸਕਦੀ ਜਿਹਨਾ ਦੀ ਮੇਹਮਾ ਨੂੰ ਵੇਦ ਨੇਤੀ ਨੇਤੀ ਕਹਿ ਕੇ ਪੁਕਾਰ ਰਹੇ ਹਨ ਉਹਨਾਂ ਹੀ ਮਹਾਂਪੁਰਸ਼ਾ ਵਿਚੋ ਹੀ ਇਕ ਸਤਗੁਰੁ ਬੰਦਿਸ਼ੋੜ ਭੂਰੀਵਾਲੇ ਮਹਾਰਾਜ ਜੀ ਦੁਨਿਆ ਨੂੰ ਤਾਰਦੇ ਹੋਏ ਇਸ ਪਾਵਨ ਅਸਥਾਨ ਤੇ ਆਏ ਬਢੀ ਹੀ ਵਚਿਤਰ ਕਥਾ ਹੈ I
                                              ਜਿਸ ਤਰਾਂ ਇਸ ਧਰਤੀ ਨੂੰ ਸਤਗੁਰੁ ਭੂਰੀਵਾਲੇ ਮਹਾਰਾਜ ਜੀ ਦੀ ਚਰਨ ਸ਼ੋਹ ਪ੍ਰਪਾਤ ਹੋਈ ਕਿਹਾ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ਮਹਰਾਜ ਇਕ ਦਿਨ ਰਕਬੇ ਓਇੰਦ ਵਿਚੋ ਦੀ ਲਾੰਗ ਰਹੇ ਸਨ ਰਾਤ ਦਾ ਸਮਾਂ ਹੋਣ ਕਰਕੇ ਲੋਕਾ ਕੋਲੋ ਵਿਸ਼੍ਰਾਮ ਕਰਨ ਵਸਤੇ ਜਗਾ ਬਾਰੇ ਪੁਛਿਆ ਕਿਸੇ ਸਜਨ ਨੇ ਮਖੋਲ ਨਾਲ ਉਸ ਘਨੇ ਜੰਗਲ ਵਾਲੇ ਪਾਸੇ ਕੀਤਾ ਜਿਥੇ ਕੀ ਇਕ ਪੀਰ ਬਾਬਾ ਸ਼ੋੰਕੇ ਸ਼ਾਹ ਜੀ ਦੀ ਮਜਾਰ ਸੀ ਇਸ ਜਗਾ ਵਾਲੇ ਪਾਸੇ ਪਿੰਡ ਦਾ ਕੋਈ ਵੀ ਆਦਮੀ ਦਿਨ ਨੂੰ ਵੀ ਨਹੀ ਸੀ ਆਓਂਦਾ ਇਸ ਪੀਰ ਬਾਬਾ ਸ਼ੋੰਕੇ ਸ਼ਾਹ ਜੀ ਕਰੋਪੀ ਬਾਰੇ ਵਿਚ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ ਚਰਚਾ ਸੀ ਅਤੇ ਲੋਕਾ ਦੇ ਮਨ ਵਿਚ ਡਰ ਦਾ ਮਾਤਮ ਵਸਿਆ ਹੋਇਆ ਸੀ ਦਸਿਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ਕੀ ਜੇ ਭੁਲ ਭੁਲ ਭੁਲੇਖ ਕੋਈ ਵੀ ਪਸ਼ੁ ਇਧਰ ਆ ਜਾਂਦਾ ਤਾ ਅਪਨੀ ਜਾਂ ਗਵਾ ਲੇਂਦਾ ਸੀ ਇਥ ਇਹ ਵੀ ਜਿਕਰ ਕਰਨ ਜੋਗ ਹੈ ਕੀ ਪੀਰ ਜੀ ਅਪਨੇ ਸਮੇ ਇਕ ਉਠਨੀ ਰਖਿਆ ਕਰਦੇ ਸੀ ਇਸ ਉਠਨੀ ਦੇ ਗਲ ਵਿਚ ਪੀਰ ਜੀ ਇਕ ਬਾਲਟੀ ਬਨ ਦਇਆ ਕਰਦੇ ਸੀ ਅਤੇ ਇਹ ਉਠਨੀ ਘਰੋ ਘਰੀ ਜਾ ਕੇ ਪੀਰ ਜੀ ਨੂੰ ਭਿਖਿਆ ਲਿਆ ਕੇ ਦਇਆ ਕਰਦੀ ਸੀ ਪੀਰ ਜੀ ਕਰਨੀ ਵਾਲੇ ਸਨ ਅਤੇ ਬਹੁਤ ਸਖਤ ਸਨ I

Wednesday, May 19, 2010

चौधरी रखा राम मल का जीवन परिवर्तन

                                       चौधरी रखा राम मल एक गुज्जर समाज में रहने वाले सीधे -सादे भगवन में आस्था रखने वाले इंसान थे तथा देश आजाद होने से पहले वेह गुजरावाला ‌‌जो की अब पाकिस्तान का हिसा है में मंड्डी के चौधरी तथा कुछ समय के लिए इंस्पेक्टर भी रहे I