बाबा गरीबदास जी की वाणी
द्वारा रचित यह शलोक हम सब जीवों पर लागू
होता है I
गुर बिन माला फेरते , गुरु बिन देते दान I
गुर बिन दान हराम है , पूछो वेद पुराण II
हम चाहें जितनी भी भक्ति कर लें पूजा पाठ कर लें
परन्तु जब तक हमारे पास पूरण गुरु का साथ नहीं और उनका आशीर्वाद नहीं होगा तब तक
हम जनम और मरण के चक्रों से नहीं बच सकते I इसी कथन को सिद्ध करती कथा है, खन्ना
शहर से चार मील की दुरी पर स्थित दहेडू गाँव के पंडित राम जी दास की I
पंडित राम जी दास माँ काली का भक्त था I
अपनी कठोर उपासना और पूजा पाठ की शक्ति से उसने माँ काली को कलयुग में प्रगट
करवाया था I माँ ने उस पर अपार कृपा की I जिस दिन देवी प्रगट हुई थी, प्रति वर्ष
उसी दिन मेला भी लगता है I एक बार राम जी दास को कुछ ज्ञानी सज्जनों ने कहा के आप
भक्त तो बहुत बड़े हो पर यह बात भी सत्य है के बिना किसी पूरण गुरु के गती नहीं
होती I जीवन मरण के चक्रों से केवल गुरु ही पार लगाते है I यह सुनकर राम जी दास
पूरण गुरु की तलाश में निकल पड़ा I बहुत दिन घूमने के बाद भी उसे अपने मन का गुरु
नहीं मिला अंततः वेह निराश होकर माँ काली के आगे प्रार्थना करने लगा के अब आप ही
मुझे मेरे गुरु से मिलवाये I
रात को जब वह सो गया तो माँ काली ने उसे
स्वप्न में दर्शन दिए, उसने देखा की माँ उसके पीछे खड़ी है और महाराज भूरीवाले उसके
आगे खड़े है Iदेवी ने कहा राम जी दास यह पुरुष जो तुम्हारे सामने खड़े है इनकी खोज
कर और इनको अपना गुरु बना I यह कह कर देवी अलोप हो गई I सुबह होते ही राम जी दास
महाराज भुरीवालों की खोज में निकल पड़ा I कई दिन वह भूखा प्यासा महाराज श्री की
तलाश में घूमता रहा और एक दिन वेह घूमते घूमते गाँव चोंदा की कुटिया में पहुंचा I
वहां उसे महाराज श्री के दर्शन हो गए I वेह ख़ुशी से रोता हुआ महाराज श्री के चरणों
में गिर गया I महाराज जी ने भी उसके चित की शांति के लीये उसे प्रसाद दीया और अपने
गंगासागर का जल पिलाया I राम जी दास ने गुरु महाराज से गुरु मंत्र लीया और अपना
बाकी की जीवन उनकी सेवा में व्यतीत कर दीया I जिन लोगों ने उसे देखा है वेह बताते
है के जब वेह महाराज श्री के दर्शन करने आता था तो कई मील दूर से ही डंडवत करता
हुआ आता था I उसकी छाती में से खून निकल जाता था, ऐसा अटूट स्नेह और विश्वास था
उसका गुरु महाराज में I
महाराज श्री वाणी में अक्सर कहते थे कि जो
भक्त हमारे ऊपर अटूट विश्वास रखते है और हमारे बताये रास्ते पर चलते है, उन्हें उनके
अंत समय में यम नहीं बल्कि महाराज भूरीवाले स्वयं लेने आते है I
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