Monday, July 19, 2010

सतगुरु कबीर रूप में प्रकट हुए आचार्य गरीबदास जी

सतगुरु समय समय पर अपना रूप बदल बदल कर इस धरातल पर अपने हँसो को पार लगाने के लिए आते है इसी तरह कबीर और गरीब में कोई फरक नहीं वेह ही सृष्टि के मालिक सतगुरु सच खंड के मालिक सभी रूपों में वास करने वाले है इसी बात को स्वामी रामानंद जी ने कबीर जी से कहा वेही वाक्य जगत गुरु बाबा गरीबदास जी ने अपने वाणी में युह बयां किया है ...

बोलत रामानंदजी, सुन कबीर करतार। गरीबदास सब रूपमैं, तुमहीं बोलन हार।।
तुम साहिब तुम संत हौ, तुम सतगुरु तुम हंस। गरीबदास तुम रूप बिन और न दूजा अंस।


सतपुरुष सतगुरु कबीर साहिब जी के ६४ हजार शिष्य थे जिनमे से अर्जुन- सुर्जन यह एक ऐसे नाम है । जिन का बाबा गरीबदास जी के पूर्व जन्म(कबीर साहिब )में बहुत महत्वता है । यह बड़ी ही विलक्षण बात है की वह दो व्यक्ति जो सतगुरु कबीर साहिब जी के जीवन से लेकर बाबा गरीबदास के जीवन तक उपस्थित थे जबकि इन दोनों के जीवन काल में २६० वर्ष का अंतर है।

सतगुरु कबीर साहिब जी ने अपने शिष्यों को एकत्रित करके कहा कि हम काशी के बाजारों में एक जलूस निकाल रहे है । उसी समय महाराज कबीर साहिब जी ने काशी में आपने शिष्यों की परीक्षा के लिए एक स्वांग रचा तथा शीशी में गंगाजल भरकर और वेश्या को साथ लेकर बाजार में निकल पड़े (यह प्रकरण आदि ग्रन्थ में विस्तार से लिखा है) बाकि सभी लेखकों ने इसे साहिब कबीर जी तक ही सीमित रखा है । केवल आचार्य गरीबदासी साम्प्रदा में सतगुरु के दोबारा जन्म लेने के बारे में पता चलता है। गरीबदासी साम्प्रदा के अनुसार जब सतगुरु कबीर साहिब ने यह सवांग रचा तो उनके साथ रविदास जी को भी ले गए । उस बक्त कबीर साहिब के ६४ हजार शिष्य थे जिन में अर्जुन- सुर्जन भी शामिल थे ।
जब हाथी पर बैठे कबीर जी ,भक्त रविदास जी और बीच में वेश्या को बैठा लिया । कबीर जी ने अपने हाथ में गंगा जल से भरी बोतल पकड़ राखी थी तथा उस में लाल रंग डाल रखा था ताकि शराब जैसी लगे शराबियो कि तरह बोलने लग पड़े जिस समय यह दृश्य उनके शिष्यों ने देखा तो सरे हैरान हो गए तथा मन में गलत ख्याल तथा नफरत आ गई । इस दृष्टान्त को जगत गुरु बाबा गरीबदास जी ने अपनी अमर्त वाणी में इस तरह कहा है

तारी बाजी पूरी में ,भरष्ट जुल्ह्दी नीच
गरीबदास गणिका सजी ,दहूं संत के बीच
गावत बैन विलास-पद ,गंगा जल पीवतं
गरीबदास विहल भये मतवाले घुमंत
भड़ुवा भड़ुवा सब कहें,कोई न जानें खोज
गरीबदास कबीर कर्म ,बाटंत सिर का बोझ


लोग तरह तरह से पागल ,मुर्ख तथा अपशब्द कहने लगे । कोई खोज न कर सका बल्कि लोग मुर्ख बन गए । सारी काशी नगरी निंदा करने लग गई । सतगुरु कबीर साहिब तथा भक्त रविदास जी दोनों की लोग तरह-तरह से निदा करने लगे । इसी तरह कबीर साहिब जी के शिष्य भी कबीर जी से नफ़रत करने लगे तथा दूर चले गए ।

केवल दो ही शिष्य सफल हुए तथा सतगुरु जी के पीछे-पीछे पहुंचे । सतगुरु कबीर साहिब जी घूमते-घूमते चांडाली चौक में पहुँच कर वहा बैठ गए । इस पर अर्जुन- सुर्जन को अच्छा नहीं लगा तथा सतगुरु जी से कहने लगे "महाराज इस जगह पर मत बैठो क्योकि यह चंडाल की जगह है" तथा यहाँ पर आप बैठे शोभामान नहीं होते । इस सचित्रण को बाबा गरीबदास जी ने यु कहा है

गरीब चंडाली के चौक में ,सतगुरु बैठे जाय
चौसठ लाख गारत गये,दो रहे सतगुरु पाय
गरीब सुरजन अर्जुन ठाहरे, सतगुरु की प्रतीत
सतगुरु ईहा न बैठिये यौह द्वारा है नीच

उस सतगुरु की लीला के आगे शिष्य की क्या हिम्मत की वेह उसे समज सके सभी की तो क्या वेह दोनों भी अपनी जगह कायम न रह सके वेह भी सतगुरु कबीर साहिब जी को शिक्षा देने लग गए । वेह यह नहीं जानते थे की सतगुरु कबीर साहिब जी आत्मारूप है बल्कि शारीर नहीं उन्हें उँच-नीच से क्या आत्मा तो इस उँच-नीच से ऊपर है तथा उसके लिए कुछ भी बुरा नहीं है । जगत गुरु आचार्य गरीबदास जी ने अपनी वाणी में इस तरह कहा है

गरीब ऊँच नीच में हम रहें , हाड चाम की देह
सुरजन अर्जुन समझियों ,रखियों शब्द सनेह


सतगुरु कबीर साहिब जी ने फ़रमाया की यह तो हाड चाम की देह है पर हम तो आत्मास्वरूप है । उसके लिए ऊँच नीच नहीं होती उसका तो भगवान से मिलाप होता है । यदि आपने भी भगवान से मिलाप करना है तो शब्द से प्रेम करो इससे तुम सब कुछ प्राप्त कर सकते हो ।

तब अर्जुन- सुर्जन ने सत्गुरु देव से बेनती की कि महाराज जी जो आत्माए आपसे बिछुड गई है । उन्हें मिलाप करने का कौन सा समय तथा जगह होगी । तब सतगुरु जी ने कहा हम बांगर देश में जाकर अपने सेवको का कल्याण करेंगे । जगत गुरु गरीबदास जी महाराज जी अपनी बाणी में वर्णन करते है

बांगर देश क्लेश निरंतर
हंस गये बहां निश्चे ही जानी
दिल्ली को मंडल मंगल दायक
रूपा धरै श्री धाम छुडानी
मुक्ति का द्वार खुलै बहां जाकर
हँस हमारे जहां लाड लड़ानी
दास गरीब तबीब अनुपम
भक्त और मुक्त की देन निशानी
दास गरीब जो रूप धरै हम
संतन काज ना लाज करैं है
हँस उधारन कारण के हित
देश विलायत आप फिरै है


उस समय जो बचन कबीर साहिब जी ने अर्जुन- सुर्जन को दिए थे की काशी के बिछड़े हुए दोनों का उधार करने के लिए हम छुडानी धाम में शारीर धारण करेंगे । तब से अर्जुन और सुर्जन सतगुरु कबीर साहिब जी की आज्ञा अनुसार अपने शारीर को स्थिर रखा । बात विश्वास व् श्रदा की है । स्वासो को दसवे द्वार में चढ़ाकर आयु बढ़ाई जा सकती है । एक बात ध्यान रखने योग्य है कि मनुष्य की आयु वर्षों में नहीं बल्कि स्वासों में होती है । इस लिए अपने स्वासो को दसवे द्वार में लेजाने से स्वास की गिनती रुक जाते है जिससे मौत पीछे होती जाती है । इसी तरह अर्जुन- सुर्जन ने स्वासो को रोककर अपनी आयु को सतगुरु के दर्शनों के लिए स्थिर रखा तथा उसी शारीर को जो काशी में था के सहित हरियाणा प्रान्त के जिला :रोहतक (अब झज्जर हो चूका है )में हुमयुपुर गाव में रहे । जो की खरखोंदा से ७ मील रोहतक जाने वाली सड़क पर है।

जब अर्जुन- सुर्जन को पता लगा की सतगुरु श्री कबीर साहिब जी ने गरीबदास नाम से छुडानी धाम में प्रगट हो गए है । तब ये दोनों महाराज श्री के दर्शन की इच्छा करके उस जमीदार (जिस भक्त के खेत में आप रहते थे ) से कहा कि अपनी बैलगाडी जोतकर हमें छुडानी धाम ले चलो तब उस भक्त ने इनकी आज्ञानुसार गाडी जोड़ ली और इन दोनों महापुरषो को गाडी के ऊपर बिठाकर श्री छुडानी धाम कि ओर चल पड़ा क्योकि यह अति वृद्द हो चुके थे ।

बहुत सावधानी से वह उन दोनों को उस घर में ले गए जिस घर में सतगुरु गरीबदास जी का जन्म हुआ था । दोनों के बिनती कि की हमें बालक के दर्शन करवाए जाये । जब बालक को उनके पास लाया गया तो उन्होंने झुक कर बालक (गरीबदास जी) को प्रणाम किया उन्हें ऐसे प्रतीत हुआ जैसे गरीबदास जी कह रहे हो कि हे अर्जुन- सुर्जन तुम ने इस अति जीर्ण खोखले (शारीर )का त्याग नहीं किया इतनी देर तक इसको क्यों खीच रहे हो । दोनों ने प्रणाम कर महाराज श्री से बिनती कि की महाराज आपने वचन किया था कि हम भटके हँसो का उधर करने के लिए छुडानी धाम में जन्म लेगे हमने सोचा आपके दर्शन करके ही निरंकार के देश जायेगे । आज हमने आपके दर्शन कर के धन्य हो गए आप कृपा करे कि हम सच खंड जा सके ।

इतिहास गवाह है कि अर्जुन और सुर्जन इसी छुडानी धाम में अपने शारीर का परित्याग कर गए ।

2 comments:

  1. प्रसंग काफी अच्छा है | मैंने स्वामी कृष्णानन्द (चौधरी रखा राम ) जी से यही प्रसंग मुतों की गौशाला में सुना था | प्रसंग ताजा करवाने के लिये धन्यवाद |

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  2. Dhan Dhan Jagat Guru Grib Das Ji Maharaj.
    Dhan Dhan Jagat Guru Granth Sahib Ji Maharaj.
    Dhan Dhan Sat Guru Brahm Sagar Ji Maharaj.
    Dhan Dhan Sat Guru Bhuri Wale.

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