ऊंचे कुल में नाश होत है़, नीचा ही कुल दीजै ।
तपिया
कूं तो दशर्न नाहीं, लोदी नालि पतीजै ।।
बात उस समय की हैं जब जगतगुरु बाबा गरीब दास जी महाराज की आयु सिर्फ ५ वर्ष की
थी| आचार्य गरीब दास जी अपने मित्रो के साथ खेल
रहे थे| जब खेलते-खेलते काफी देर हो गई तब महाराज जी के साथी बालक थक गये और फिर
थक-हार कर बैठ गए पर महाराज जी का मन अभी भी और खेलने का था तो महाराज जी कंकरियों
द्वारा खेलने लगे| महाराज
जी ने कंकरियों से खेलते-खेलते जब “घींची” की चोट चलाई तब वह कंकर तरखानों के
मलूका नामक लड़के की छोटी अंगुली में बहुत जोर से जा लगी|