Sunday, December 11, 2016

सम्राट के दरबार में गाय को जीवित करने की कसनी


                          सम्राट सिकन्दर के आदेश पर एक गाय को दरबार में लाया गया। सिकन्दर  ने कसाइयों द्वारा उस गाय की गर्दन को कटवा कर धड़ से अलग करा दिया और कबीर साहिब से कहा कि कबीर तुम अगर खुदा-स्वरूप हो, खुदाई ताकत रखते हो और सर्वशक्तिमान तुम्हारा राम हर ववत तुम्हारे साथ रहता हैतो तुम इस मृत गाय को जीवित करके दिखाओ, अगर तुमने इस मृत गाय को जीवित कर दिया तो तुम्हारी सारी तकसीर माफ कर दी जाएगी वरना गाय की तरह ही तुम्हारे जिस्म के भी टुकडे कर दिए जाएंगे 

Tuesday, November 22, 2016



बेदाना फल दूर है


जिस समय आचार्य गरीब दास जी का अवतार हुआ उस समय समाज दिशा हीन हो चूका था | सत्य का मार्ग बताने वाला ना होने के कारण लोग चेले चपाटों के पीछे लग कर जीवन व्यर्थ कर रहे थे | ढोंगी साधु महंतों की कोई कमी नहीं थी जो लोगों को अपने पीछे लगाने के लिए अनेकों प्रकार की युक्तियों का प्रयोग करके भोलि भाली जनता को बुद्धू बनाते थे | ऐसे ही एक साधू थे काशीदास दास जिनकी मण्डली में काफी चेले थे | इसने अपने आप को महापुरुष सिद्ध करने के लिए एक स्वांग रच रखा था | यह एक बर्तन को दोनों ओर से डोरी से बांधकर अपने कानों में लटका लेता और अपनी जीभ पर नमक मिर्च मसलकर बर्तन में अपनी लार को टपकाता | अपने शिष्यों सेवकों से कहता की मेरे दशम द्वार से अमृत झर रहा है | अज्ञान वश उसके शिष्य सेवक उसे अमृत समझ कर पी जाते | यह अपनी शिष्य मण्डली के साथ घूमते घूमते राजस्थान से हरियाणा प्रांत में चले आए | हर गाँव में महाराज जी की महिमा को सुन कर उसके अन्दर महाराज जी के दर्शन करने की उत्कंठा उत्पन्न हुई | उत्कंठा वश वह अपनी शिष्य मण्डली के साथ छुड़ानी पहुंच गया और तलाब पर वट वृक्ष के नीचे डेरा जमा दिया | जलपान करने के पश्चात अपने कुछ शिष्यों को लेकर महाराज जी के दर्शन हेतु आश्रम में पहुंचे जहां पर पहले ही काफी संगत बैठी थी | बंदिछोड तो अंतर्यामी हैं उन्होंने अपनी दिव्य दृष्टि के द्वारा उसके पाखंड को जान लिया |

महाराज जी ने बड़े सत्कारपूर्वक उन्हें बैठने के लिए आसन दिया और जलपान के लिए पूछा | काशीदास ने कहा की कोई रूचि नहीं, हम जल पान करके आए हैं | फिर महाराज जी ने उपदेश देते हुए कहा की साधू जी सिर्फ ऊपर से अपना भेष हंस के समान बना लेने से कुछ लाभ नहीं आप के अन्दर की वृति तो बगुले जैसी है अर्थात आप का यह भेष लोगों को ठगने के लिए है | इस प्रकार के ढोंगी पन से आप को कुछ भी प्राप्त नहीं होगा अंत में इस ज़माने से खाली हाथ ही जाओगे | काशीदास अगर तुम अमीरस का स्वाद चखना ही चाहते हो तो जितेन्द्रिय होकर योगसाधना किया करो | क्यूंकि बेदना (दाने से रहित) अमृत फल बहुत दूर है | उसे पाने के लिए जीभ पर नमक मिरच लगाने से कोई लाभ नहीं | अगर तुम कुछ समझ रखते हो तो हम तुम्हें सार बात बताते हैं की तुम शब्द ब्रह्म का आश्रय लो क्यूंकि ऐसा शुभ अवसर तुम्हे दोबारा नहीं मिलेगा | 

महाराज जी द्वारा काशीदास को दिया गया यह उपदेश आप जी की वाणी “ भ्रम विधूसन का अंग “ में दर्ज है जिसकी कुछ साखियाँ नीचे दि हैं |

गरीब, ऊपर हंस हिरम्बरी, भीतर बग मंझार |
इन बातों क्या पाईये, चल्या जमाना हार || ३१ ||

गरीब, काशीदास कसो इस तन कूँ, ज्यूं सरवै अमी शराब |
बेदाना फल दूर है, नून मिरच नहीं लाभ || ३२ ||

गरीब, जो जाने तो जान ले, बहुरि न ऐसा दाव |
आगे पीछे की कहूँ, शब्द महल में आव || ३३ ||

इस प्रकार उसके पाखंड का भांडा सब के सामने फूट गया | सभी को पता चल गया की साधू जी अमृत रस किस प्रकार टपकाते थे | इस पर काशीदास लज्जित होकर सतगुरु जी के चरणों में गिर कर अपने कुकर्मों की क्षमा याचना करने लगा | उसने महाराज जी के समक्ष यह प्रण लिया कि आगे से ऐसा पाखंड नहीं करूँगा |

महाराज जी से आज्ञा लेकर अपनी शिष्य मण्डली को वहीँ पर छोड़कर आप साधना करने की इच्छा से कहीं चले गए |

इस प्रकार महाराज जी ने एक पाखंडी साधू के पाखंड का परदा फाश करके ना केवल उस साधू का उद्धार किया बल्कि भोले भाले शिष्य और सेवकों को भी उस के जाल से छुड़ा लिया |

Thursday, November 3, 2016

गोकुल गांव की, गुजरी गंवार

आचार्य श्री गरीबदास जी का यह सिद्धांत बड़ा महत्वपूर्ण है कि जीव का इष्टदेव में पूर्ण निश्चय  निश्चय होना चाहिए।  अगर परिपक्व निश्चय है उसमें किसी प्रकार की शंका का समावेश नहीं, तो ऐसे भाग्यशाली जीव के लिए नाम, ज्ञान, ध्यान आदि की जानकारी लेने की भी आवश्यकता नहीं है। प्राचीन इतिहास में हमें ऐसे बहुत उदाहरण मिलते हैं कि निश्चय वादी पुरुषों को भगवान यदा-कदा प्रकट होकर दर्श दिखा देते थे। बिना ज्ञान ध्यान के एक निश्चय का दामन थाम कर बहुत से जीव भवसागर में पार हो गये। बन्दीछोड़ गरीबदास साहिब जी फरमाते हैं:-

Tuesday, October 4, 2016

Philosophy and Religion of Garib Das Ji-Metaphysics

सतगुरू ब्रहमसागर भूरीवाले महाराज जी के सेवक डाॅ. के. सी. गुप्ता (लुधियाना-पंजाब) का शोधपरक लेख:-
        In the writings of Garib Das, “Metaphysics is subordinated to musticism”. The highest principles apprehended by pure reason are to be apprehended in mystic experiences. God is the Ultimate Reality. He is formless and hence all anthropomorphism is condemned. God is One and Absolute. All creatures and creation depend on the One God. He is the Lord of heaven and earth. 

Wednesday, September 28, 2016

तुम सतगुरु कैसे कहलावौ



तुम सतगुरु कैसे कहलावौ

एक समय धर्मदास जी की शाखा का कबीर पंथी साधु हुलासीदास आचार्य श्री गरीबदास जी के दर्शन करने छुडानी आया | महाराज जी को प्रेमपूर्वक दण्डवत प्रणाम किया और नम्रतापूर्वक बन्दीछोड से कहा की अगर हुकम हो तो हम कुछ कहना चाहते हैं | 
 
महाराज जी ने कहा निर्भय होकर कहिये | तो हुलासिदास जी कहने लगे की महाराज जी मैंने आपका शब्द सुना था जिसको सुनकर मुझे आपके दर्शन करने की इच्छा हुई यहाँ आकर आपके दर्शन करने पर मेरे मन में एक संशय उत्पन्न हो गया है कृपया आप उस का निराकरण करिए | 

महाराज यह बताइये की आप खुद को सतगुरु कैसे कहलवाते हो ? आप देहधारी हैं आपके पत्नी पुत्र और परिवार है, आप सभी तरह के सांसारिक व्यवहार करते हैं | सतगुरु तो निराकार ब्रह्म स्वरुप हैं, सर्वत्र समान रूप से व्यापत है | सतगुरु तीन काल भूत, वर्तमान और भविष्य से परे है, वह तीन गति से न्यारा है | वह तो परम देश शब्द अतीत सुन का वासी है और चार दाग से न्यारा रहता है | जिसका जन्म मृत्यु है वह तो माया के अधीन होता है सतगुरु मायातीत है | वह तो मोक्ष बंधन से परे है | मान बड़ाई का उसे पता ही नहीं | ना वह अवतार धारण करता है | फिर सतगुरु को ऐसी कौन सि इच्छा हुई जो वह जगत में आ गये |

यह सुन कर महाराज जी ने कहा की अवतारों ने कभी नहीं कहा की हमें औतार कहो यह तो जगत के लोग उन्हें अवतार कहते हैं क्योंकि वह असुरों का नाश करके भक्तों का उद्धार करते हैं , सतगुरुओं ने कभी यह नहीं कहा की हमें सतगुरु कहो यह तो जगत के लोग प्रेम से उन्हें ऐसा कहते हैं क्योंकी उन्होंने नाम की नौका बना कर कितनो को पार उतार दिया | इसी तरह साधु नीर खीर का भेद बताते हैं इसलिए उन्हें साधु कहते हैं | 

यह तीनों ज्योति स्वरुप हैं | जन्म मरण तो पंच भौतिक शरीर का होता है और ज्योति ज्योत में समा जाति है | इनका आना जाना नहीं होता | सागर में उठने वाली लहर उसीमे समा जाति है उसमे जन्म या मृत्यु का कहां प्रश्न है | पानी में उठे बुलबुले को देखकर उसके अलग अस्तित्व का आभास होता है परन्तु पानी के बिना बुलबुले का कोई अस्तित्व नहीं है | तत्वत तो वह पानी ही है बुलबुला तो उसका नाम मात्र है वह पहले भी पानी था, अब भी पानी है और फिर पानी ही रहेगा | ऐसे ही सतगुरु के स्वरुप को देख कर उनका ब्रह्म से पृथकत्व का जिव को भ्रम होता है परन्तु वह ब्रह्म ही हैं | 

परमपिता परमेश्वर (साहिब) ही सतगुरु बन कर हंसो का उद्धार करने हेतु आटे हैं शब्द रुपी बाण मार कर पार उतार देते हैं |

सतगुर अजर अमर अविनाशी है | सात धातु के इस स्थूल शरीर में नौ तत्व का सूक्ष्म शरीर रहता है लेकिन सतगुरु इन दोनों से अलग है | जैसे जल से भरे घड़े में सूर्य का प्रतिबिम्ब दिखाई देता है तो ऐसा आभास होता है की मानो सूर्य उस घड़े में आगया हो लेकिन वह तो सूर्य का प्रतिबिम्ब मात्र है ऐसे ही देह धारी सतगुर उस का प्रतिबिम्ब मात्र ही है | जैसे घड़े के टूट जाने पर उस के अंदर का प्रतिबिम्ब भी नष्ट हो जाता है लेकिन सूर्य वैसा ही रहता है इसी तरह इस देह के नष्ट हो जाने पर भी सतगुर नष्ट नहीं होता क्यूँ की वह कभी इस देह में आया ही नहीं था |

सतगुरु निराकार हैं लेकिन हंसों के उद्धार के लिए सतगुरु देह धार कर आते हैं क्योंकि साकार को साकार ही चिता सकता है | सतगुरु आकार लेकर निराकार का भेद बताते हैं |

यह सुन कर हुलासिदास संतुष्ट और प्रसन्न होकर कहने लगे की महाराज जी आप ने मुझ पर बड़ी कृपा की है आप साक्षात कबीर जी का ही अवतार हैं | अनेक प्रकार से स्तुति और प्रार्थना करके वह वहां से चले गये |

Thursday, July 28, 2016

श्री अखंड पाठ की विधि

अनंता-अनन्त अखिल ब्रह्मंड नायक ज्योत बन्दीछोड़ गरीब दास साहिब जी ने श्री छुड़ानी धाम जिला झज्जर तहसील बहादुरगढ़ हरियाणा में सन १७१७ में अवतार लिया | बन्दीछोड़ गरीब दास साहिब जी ने जिव-कल्याण के लिए पावन-पवित्र कल्याणकारी अमृतमई वाणी “श्री ग्रन्थ साहिब” की रचना की |

Wednesday, April 6, 2016

सतगुरु हंस उधारन आए

एक समय अलमोड़ा जो की उत्तरप्रदेश में एक पर्वतीय क्षेत्र है, वहां पर एक फलाहारी सिद्ध मनसाराम जी रहते थे | उन्होंने सतगुरु गरीबदास जी के बारे में पता लागा तो उनके मन में कुछ प्रश्न उठ खड़े हुए | उनके एक शिष्य थे हांडीभडंग जो देशाटन करते रहते थे | मनसाराम जी ने उन्हें अपने प्रश्नों के समाधान हेतु सतगुरु जी से मिलने के लिए भेजा | हांडीभडंग पूर्व से पश्चिम दिशा की तरफ घूमते घूमते छुडानी आ पहुँचे |