Thursday, December 31, 2020

हंस उधारन भौजल तारन सतगुर आये थे लोई

 

हंस उधारन भौजल तारन सतगुर आये थे लोई

 

एक दिन रात को भोजन करने के बाद सतगुरु गरीबदास जी पलंग पर आराम कर रहे थे और कुछ शिष्य उनकी सेवा में उपस्थित थे | उनमें से कुछ उनके चरण दबा रहे थे और कुछ पंखा कर रहे थे | जब कुछ साधारण बातें चल रही थी तो उनमें से एक शिष्य ने सतगुरु जी से पूछा की सतगुरु ! आप ने अपनी वाणी में कहा है की –

गरीब जिस मंडल साधु नहीं, नदी नहीं गुंजार |

तजि हंसा औह देसड़ा, जम की मोटी मार ||

गरीब बाग नहीं बेला नहीं, कूप न सरवर सिंध |

नगरी निहचै त्यागिये, जम के परि हैं फंध ||

 

Wednesday, January 1, 2020

सतगुरु बन्दीछोड़ साहिब गरीब दास जी का अवतरण



सतगुरु बन्दीछोड़ साहिब गरीब दास जी का अवतरण

अनंत श्री विभूषित प्रात: स्मरणीय श्री जगतगुरु बाबा गरीब दास जी महाराज का अवतरण हरियाणा प्रान्त के जिल्हा-झज्जर , तहसील - बहादुरगढ के गाँव छुडानी में विक्रमी संमत १७७४ (. सन १७१७)  की वैशाख शुक्ल पूर्णिमा को, मंगलबार के दिन, सूर्योदय से दो महूर्त पहले, अभिजीत नक्षत्र में, क्षत्रिय कुल में, जाट जाती के धनखड गोत्र में पिता श्री बलराम जी के घर सुभागी माता श्रीमती राणी जी की पवित्र कोख से हुआ |


अगाध रमैंणी प्रसंग


अगाध रमैंणी प्रसंग

एक नाथ संप्रदाय के रामनाथ नाम  के सिद्ध थे जो  योग विद्या के जानकर थे | वह पूरे भारत में भ्रमण करते रहते और जहां भी किसी महापुरुष के बारे में सुनते तो उनकी परीक्षा लेने के लिए उनसे योग साधना के प्रश्न किया करते | सतगुरु गरीबदास जी के यश को सुनकर आप उनकी परीक्षा लेने हेतु छुडानी आए | महाराज जी के दरबार में पहुँचे और “ आदेश” कहकर अभिवादन किया | महाराज जी ने शिष्टाचार पूर्वक सिद्ध जी का आदर सत्कार किया और आसन देकर उचित स्थान पर बिठाया | जलपान के बाद कुशल क्षेम पूछा | उपरन्त सिद्ध जी ने ज्ञान की बाते अराभ कर दीं | महाराज जी और सिद्ध जी के बीच जो ज्ञान की बातें हुई वह महाराज जी की बाणी में “ आगाध रमैंणी” के नाम से संग्रहित हैं | ज्ञान की बातें करते करते सिद्ध जी ने महाराज जी से कहा की आप सुन्न अर्थात तत्व शुन्य की व्याख्या करके बताओ |

Tuesday, December 31, 2019

सतगुरु गरीबदास जी का मथुरा प्रस्थान


सतगुरु गरीबदास जी का मथुरा प्रस्थान

छुडानी से कुछ ही दुरी पर आग्नेय दिशा की तरफ, खेड़का और दुलेह्ड़ा गांवों के मध्य में निम्बार्काचार्य संप्रदाय के वैष्णवों का एक प्राचीन सिद्धपीठ है | उस मठ के महंत स्वामी गैबीदास जी सतगुरु गरीबदास जी के समकालीन थे | महंत गैबीदास जी का सतगुरु जी के साथ बहुत प्रेम था | वह महीने में एक दो बार सतगुरु जी से मिलने अवश्य आ जाते और अध्यात्मिक विषय पर चर्चा करते | गैबीदास जी कृष्ण उपासक थे और साल में एक बार वृन्दावन जाकर कृष्ण जी के दर्शन जरूर करते |
एक बार आपने सतगुरु जी से अनुरोध किया की इस बार आप झूलों के दिनों में हमारे साथ वृन्दावन अवश्य पधारें | सतगुरु जी ने कहा की हमारी तीर्थ करने में कोई आस्था नहीं है और साखी उच्चारण की –

Wednesday, March 14, 2018

सतगुरु भूरीवालों की महिमा न्यारी

एक बार रामगोपाल नाम का एक व्यक्ति था । जिसके लडके का नाम सोमनाथ था । एक दिन वह बच्चा अपनी हमउम्र के बच्चों के साथ खेल रहा था । तभी किसी बच्चे ने उसके पीछे से धक्का दे दिया और वह मुंह के बल गिर गया । गिरने से उसकी जीभ में दांत गढ़ गए, उसकी जीभ का एक तरफ का साथ रहा बाकी सारा कट गया । जीभ लटकने लग गई, खून से उसके कपड़े भीग गए । ऐसी हालत हो गई कि वह कुछ खा भी नहीं सकता था और ना ही कुछ बोल सकता था।

Monday, December 18, 2017

सतगुरु गरीबदास जी का स्वरुप वर्णन



सतगुरु गरीबदास जी का स्वरुप वर्णन

सतगुरु गरीबदास जी के ज्येष्ठ पुत्र श्री स्वामी जैतराम जी ने अपनी आँखों देखा सतगुरु जी के स्वरुप का वर्णन अपनी वाणी में किया है |

अब गरीबदास सतगुरु को पाऊं, ताके चिन्ह सहन समझाऊं |
मध्य स्वरुप सलौना भाखों, नख शिख साज सकल ही आखों ||
लघु दीर्घ से न्यारा रूपं, मध्य भाव है अंग अनूपं |
सजन सलौना सतगुरु मेरा, या भव आये करन निबेरा ||
बानी उचरी बहु प्रकारा, ज्ञान ध्यान की चाले धारा |
जैसा पात्र तैसा दाना, संसय नासक बानी प्रगटाना ||
नाद गुंजारा शब्द उचारा, किन जन विरले किया विचारा |
बानी बहु प्रकार कहावे, बानी को कोई खोजी पावै ||
खोजि खोज करे मनमाना, बानी खोजे अकल अमाना |
बानी मेरे सतगुरु भाखी, जाकी विरले जाने झांखी || 

Monday, August 21, 2017

सतगुरु श्री गरीबदास महाराज जी का परलोक गमन



सतगुरु श्री गरीबदास महाराज जी का परलोक गमन

छुड़ानी धाम में अवतार ले कर अनेक प्रकार की लीलाएं करते हुए, वाणी की रचना और प्रचार करते हुए, अनेका अनेक लोगों का उद्धार करते हुए जब सतगुरु गरीबदास जी की आयु ६१ वर्ष और तिन मास की हुई तो आप जी ने परमधाम पधारने का संकल्प किया | अपने सभी प्रेमी भक्त, संत और सेवकों को आज्ञा पत्र लिखकर भेजे की अगर कोई अंतिम दर्शन करना चाहता है तो वह फाल्गुन सुदी एकादशी को छुड़ानी में पहुंच जाए, क्यूंकि हमने उसदिन परमधाम पधारने का निश्चय किया है | जिसे भी पत्र मिला वह संदेश पाकर स्तब्ध रह गया | चित्त उदास हो गया, मन शोक से ग्रसित दो गया | जिसे जिसे भी संदेश मिला वह सभी कार्य छोड़कर महाराज श्री के दर्शन के लिए पहुंच गया | उस एकादशी के दिन बहुत अधिक मात्रा में लोग एकत्रित होने लगे | जिनमें साधू, संत, महापुरुष, भक्त और सत्संगी जन सभी शामिल थे |  उस समय ५०० से अधिक तो महाराज जी के वैरागी साधू थे |

Saturday, June 17, 2017

पुजारी की पीड़ा दूर की

 बन्दीछोड़ आचार्य श्री गरीबदास जी ने अपने वाणी ग्रंथ में पारख के अंग मे गुरूदेव  कबीर साहिब जी की जीवन लीला संक्षेप में वर्णन की है। कबीर साहिब जी के समय मे भारत में मुगल साम्राज्य था। यहां का बादशाह सिकन्दर लोदी था, जो इस्लाम धर्म का कट्टर समर्थक था परन्तु श्री कबीर साहिब जी की महिमा देखकर इनका पक्का अनुयायी बन चुका था। अपने मन का भ्रम दूर करने के लिए सिकन्दर लोदी ने 52 बार श्री कबीर साहिब जी की परख (परीक्षा) की, अंत में हारकर उसे महाराज जी का लोहा मानना ही पड़ा। एक बार श्री कबीर साहिब जी ने राजा सिकन्दर को एक कौतुक दिखाया:-