सतगुरु भुरीवालो के मोजुदा गद्दी नशीन वेदांत आचार्य महाराज चेतना नंद जी भूरीवाले ( काशिवाले ) भी अक्सर अपने प्रवचनों मै कहते है
जरे जरे में है झांकी भगवान की , किसी सूझ वाली आँख ने पहचान की I
कुछ ऐसा ही वाक्य है गाव चौंदा का I जँहा महाराज भूरीवाले अक्सर जाया करते थे I गाव चौंदा की कुटिया में एक विशाल व अधियात्मिक विस्तृत बोहड़ का पेड़ था I एक बार महाराज भूरीवाले उस वृक्ष के नीचे भगवत चिन्तनं कर रहे थे की
वहा का पंडित जिसका नाम रब्बा था , वहा विचरता हुआ आया और संत महापुरशो के प्रति अनाप -शनाप कहने लगा , वहा जो संत महापुर्ष थे उसकी बात से विचलित हो रहे थे और क्षमा शीलता के साथ अपना कार्य करते रहे , किन्तु जब उस पंडित ने अपने मुख को लगाम नहीं लगाई और बहुत देर तक नहीं माना तब महाराज श्री जी ने उसे अपने करीब बुलाकर समझाते हुए कहा की भाई महात्मा तो सम्मान करने के योग्य होते है , तूं इन का अनादर क्यों करता है ?
वहा का पंडित जिसका नाम रब्बा था , वहा विचरता हुआ आया और संत महापुरशो के प्रति अनाप -शनाप कहने लगा , वहा जो संत महापुर्ष थे उसकी बात से विचलित हो रहे थे और क्षमा शीलता के साथ अपना कार्य करते रहे , किन्तु जब उस पंडित ने अपने मुख को लगाम नहीं लगाई और बहुत देर तक नहीं माना तब महाराज श्री जी ने उसे अपने करीब बुलाकर समझाते हुए कहा की भाई महात्मा तो सम्मान करने के योग्य होते है , तूं इन का अनादर क्यों करता है ?
इतना सुनते ही वह महाराज श्री पर भी बिगड़ गया और कहने लगा " मै अपने कृष्ण के अलावा किसी दुसरे को नहीं मानता " विशेष कर भगवे कपड़े वाले साधुओ से तो बहुत चीड़ है I महाराज जी समझ गए की यह नाम का ही पंडित है इसने कृष्ण को जाना ही नहीं I बस महाराज श्री को उस पर दया आ गई , महाराज श्री ने उस पंडित से कहा " अरे मुर्ख तुने कृष्ण को तो पहचाना ही नहीं वो तो कण- कण में घट- घट में व्याप्त है I मेरी ओर देख मैं भी तो कृष्ण का ही स्वरूप हूं, पूरा संसार ही कृष्णमय है I "
ऐसा सुनकर ज्यों ही उसने महाराज श्री की ओर दृष्टि घुमाई तो देखा कि महाराज श्री के स्थान पर भगवन श्री कृष्ण बैठे मधुर मनोहर मुरली बजा रहे है I भगवान के दिव्या मंगल स्वरूप के दर्शन कर वो आश्चर्यचकित हो गया ओर हर्ष के मारे उसके मुख से बाणी ही नहीं निकल रही थी I पंडित ने जब उस बोहड़ के पेड़ कि तरफ दृष्टि घुमाई तो क्या देखता है कि बोहड़ के पत्ते - पत्ते मे भगवान का वही स्वरूप , चारो ओर कृष्णमय , कण- कण मे भगवान श्री कृष्ण के सर्व व्यापक स्वरूप का जब उसे दर्शन हुए तो उसकी मोह निद्रा भंग हो गई I वह घोर पश्चाताप करता हुआ महाराज श्री जी के चरणों मे लेट कर क्षमा याचना करने लगा और सभी सन्तो से भी माफ़ी मांगने लगा I
इस के बाद वह महाराज श्री कि ही सेवा करने लगा ओर सारा जीवन उनकी भगती भाव से सेवा पूजा करता रहा I
इस मे दो राये नहीं है कि महाराज भूरीवाले साक्षात् भगवान श्री कृष्ण के अवतार थे I तभी तो महाराज ब्रह्म सागर जी भूरी वालो का जन्म विक्रमी संमत १९१९ को भादों की कृष्ण पक्ष की अष्टमी वाले दिन को हुआ था क्योकि इस पक्ष मे स्व: भगवान कृष्ण इस धरातल पर आये थे I
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ReplyDeleteSat Sahib Moahan lal ji,Maharaj Buriwal walo ne aise boaht se chamtkar dikhe jis ton eh sidh hunda hai k Maharaj Bhuriwal hi shri Krishan a,shri Ram ji ar Vishnu baghwan de Avtar hn. by vijay chauhan ,village Tadewal ,Nurpur bedi dist Ropar
ReplyDeleteSat Sahib Mohan lal ji ,,,Maharaj Bhuri walo ne aise bohat chamtkar dikhae,jis to ehh sidh hunda hai ki maharaj bhuriwal pooran bram Vishnu Bhawan k avtar hai,mahraj sri Bhuri wale Sahib ,sri Rakbe wale ,sri Gauna wale ar Mere Gurudev Kashi walo ki mehma aprmpar hai,sat sahib by vijay chauhan Tadewal ,Nurpur bedi, Ropar 9815725149
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