सतगुरु भूरीवालों के बाल अवस्था के कौतक (सर्प द्वारा
छाया)
कबीरा क्यों मैं चिंत हूँ मम चिन्ते क्या होये,
मेरी चिंता हरी करें चिन्ता मोहे न कोये!
सतगुरु भूरीवालों का जन्म
विक्रमी सम्मत
१९१९ में भाद्रपद कृष्ण पक्ष अष्टमी (श्री कृषण अष्टमी) में
हुआ, और सत्गुरों में आस्था रखनेवाले भगत जन श्री कृष्ण जी का ही अवतार मानते हैं! आप विख्यात
भारत में अपने तेजस्व से अनंत श्री विभूषित संत शिरोमणि स्वामी ब्रह्म्सागर जी महाराज भूरीवालों के नाम से सुप्रसिध हुये! आप की बाल
अवस्था से ही लोगों को ऐसे-ऐसे करिश्मे देखने नसीब हुए लेकिन भोले लोग तब यह समझ न सके!
एक समय
की बात है जब महाराज श्री मात्र आठ मास की आयु के थे, गृहस्थी में गेहूं की फसल
की कटाई का समय था और हर रोज़ की तरह ही माता पिता अपने बालक "गंगाराम" (महाराज श्री श्री ब्रह्म्सागर जी का पुराना नाम) को भी
अपने संग खेत में ले गये! बच्चे को खेत
की मेंड पर लिटाकर माता पिता अपने गेहूं कटाई के कार्य में व्यस्त हो गये! गर्मी के दिन
थे! दिन चड़ता गया, बच्चा सोया था
, सूर्य की तपती तीक्ष्ण किरणें बालक के कोमल चेहरे पर पड़ने लगीं, तेज धुप से बालक
का चेहरा तमतमाने लगा! किन्तु माता पिता अपने काम की वयस्तता
के कारण अपने बालक की कोई सुध न रही! सूर्य की तपती धूप से बेअसर आप घोर निद्र
अवस्था निश्चिन्त पड़े हैं! फिर क्या इतने में बाल रूपी श्री कृष्ण अवतार के चेहरे
को तप्त्पते देख एक विशाल काया विषधारी सर्प अपने फन से बालक के मुख पर छाया किये
निहार रहा है! आप तो उस परम पिता परमेश्वर का अवतार हैं, यह ब्रह्माण्ड आप के अधीन
है और आप की सेवा में हाज़िर है!
इत्फाक की बात सूर्य की भीषण गर्मी महसूस
कर माता को अपने बच्चे का एहसास हुआ तो बच्चे की तरफ देखीं! बाल रूप में सतगुरु जी
निश्चिन्त सो रहे हैं और सर्प उनको अपने फन की छाया किये हुए है यह देख माता
व्यग्र हो एक दम से चिल्ला उठीं फिर क्या देखते ही देखते आस पास के किसान जो खेतों
में काम कर रहे थे माता की चिल्लाहट सुन इकत्र हो गए! इस घटना को देख सभी व्याकुल
हो गए कि अब क्या किया जाये और बच्चे को इस विशाल विषधारी सर्प से कैसे बचाया
जाये! सभी त्राहि त्राहि करने लगे किसी को कुछ नहीं सूझ रहा था! कोई नजदीक भी नहीं
जा रहा कि कहीं सर्प बच्चे को कोई नुकसान न पुह्चाये! मालिक की लीला तो अपरम्पार
है! लोगों की हलचल महसूस कर बालक “महाराज श्री” करवट बदलने लगे और यह सब देख उधर
सर्पराज वि अपना फन समेटे और धीरेधीरे सरकते हुए न मालूम कहाँ गायब हो गए! इस घटना
को देख माता पिता व् वहाँ उपस्थित लोग हैरान व् चकित रह गए! सर्प अलोप होते ही
मातापिता ने बालक को अपनी गोदी में उठाया और पुचकारा, माँ ने प्यार किया और बलैया ली!
गृह्सिथी लोग उस भगवन के इस रूप से अनभिज्ञ घर आ कर विष झाड़नेवालों तांत्रिक से
बालक को झड्वाया, ज्योत्शियों से पुछा गया और बताया की यह बालक तो कोई अवतारी पुरष
है! यह कोई सिद्ध योगी बनेगा, यह पामरजनों के कल्याणार्थ ही धरती पर आगमन हुआ है! यह संसार को आत्म तत्व का ज्ञान व् उपदेश देगा, लोक
कल्याण भावनाओं को प्रश्रय देगा! सर्प क्या इस का तो काल भी कुछ नहीं बिगाड
सकता!.......इति इति सत्गुरों की महिमा!
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