एक समय सतगुरु महाराज आचार्य गरीबदास जी अपनी घोड़ी पर सवार हो कर कही से आ रहे थे , उनके साथ कुछ सेवक भी थे | रास्ते में भाटगाव का डाकू सुजान सिंह आपने दल -बल सहित सामने से आ रहा था | उसने देखा की ये कोई घोड़ी वाला बड़ा आदमी दीखता है क्योकि उस समय किसी गणमान्य व्यक्ति के पास ही घोड़ी होती थी | इसलिए सतगुरु जी को कोई बड़ा साहूकार समझकर उसने दूर से ललकारा कि वही पर रुक जाओ ,जो तुम्हारे पास है ,उसे उतार कर एक तरफ हट जाओ परन्तु सतगुरु जी तो निर्भय थे | उनके मन में किसी भी प्रकार का भय उत्पन नहीं हुआ तथा वे चलते रहे | गुरु ग्रन्थ साहिब जी में गुरु तेग बहादुर जी ने नौवे मोहल्ले में लिखा है :-
भय काहू को देत नहीं ,न भय मानत आन |
कह नानक सुन रे मना ,सो मूरत भगवान ||
दास गरीब अभय पद परसे ,मिलै राम अविनाशी |