Monday, May 19, 2014

भक्त निर्मल दास की दिव्य दृष्टि खुलना


                                                                  गरीब काया माया खंड है, खंड राज और पाट |
             अमर नाम निज बंदगी, सतगुरु से भई साट ||
                                      एक बार की बात है कि आचार्य श्री.श्री १००८ गरीब दास जी महाराज बाहर पिली जोहड़ी के खेत में बैठे ज्वार का गन्ना चुस रहे थे उसी वक्त वंही पर उनका एक भक्त श्री निर्मल दास बैठा हुआ था वह आचार्य श्री.श्री १००८ गरीब दास जी महाराज के द्वारा चुसे हुए गन्ने की झूठन को उठा कर चूस रहा था |तभी उस भाग्यवान महापुरुष(भक्त) की दिव्य दृष्टि खुल गयी

और वो आचार्य श्री.श्री १००८ गरीब दास जी महाराज से कहने लगा कि महाराज जी यँहा से कुछ ही दूरी पर बहुत सारा धन गड़ा हुआ है हम उस धन को निकाल लेते है वह धन कई पीढियों तक भंडारे के लिए पर्याप्त रहेगा | तब आचार्य श्री.श्री १००८ गरीब दास जी महाराज जी ने कहा कि निर्मल दास जी हमारे पास आओ और बताओ धन कंहा है" | जैसे ही वो भक्त महाराज जी के पास पहुंचा तभी महाराज जी ने अपना कोमल हाथ उसके सिर पर रख दिया और कहा कि  "निर्मल दास अब बताओ धन कंहा है" | 
                                                                                                                            

                                                                                                                        तब निर्मल दास जी हाथ जोडकर कर कहने लगे कि महाराज जी आप किस धन की बात कर रहे हो मुझे तो नहीं पता कि कोन सा धन कंहा है | आचार्य श्री.श्री १००८ गरीब दास जी महाराज जी द्वारा निर्मल दास जी के सिर पर हाथ रखते ही दिव्य दृष्टि वापिस खीच ली जो उसे झूठे गन्ने चूसने से मिली थी| यह सब महाराज जी ने इसलिए किया क्युकि वह सेवक ये सब बाते और लोगो को बताता और उसके मन में अभिमान भी जग उठता वह लोगो को अपनी शक्तियां दिखाने में ही लगा रहता और जिससे उसकी पूजा-पाठ सब छुट जाती और उसको इस भवसागर से कभी छुटकारा न मिल पाता |
तब आचार्य श्री.श्री १००८ गरीब दास जी महाराज जी ने उस भक्त से कहा कि तुम लोगो को किसी प्रकार की ऋद्धि-सिद्ध में नहीं फंसना चहिये यह एक प्रकार का असाध्य रोग है जिससे हम कभी भी छुट कर अपने असली ध्येय पर नहीं पहुँच सकते है | आचार्य गरीब दास जी महाराज जी अपनी वाणी में भी कहते हैं कि

                                                           गरीब सतगुरु के दरबार में, कमी काहे की हँस |
        चार बातोँ की चाह हैं, ऋद्धि सिद्ध मान महन्त || 

                               और तब आचार्य श्री.श्री १००८ गरीब दास जी महाराज जी ने भक्त निर्मल दास को २४ सिद्धियों बताई जो कि ब्रह्म रमैणी में है :

शब्द महल में सिद्धि चोबीसा |
                 हंस बिछोरे बिस्वे बीस ||
एक सिद्धि सुर देव मिलावे |
                 एक सिद्धि मन बिरति बतावै ||
एक सिद्धि है पोंन सरुपी |
                 एक सिद्धि होवे अनरूपी ||
एक सिद्धि निसवासर जागें |
                  एक सिद्धि सेवक होये आगे ||
एक सिद्धि सुरगा पुर धावे |
                  एक सिद्धि जो सब हाट छावे ||
एक सिद्धि सब सागर पीवे |
                  एक सिद्धि जो बहु जुग जीवे ||
एक सिद्धि जो उड़े अकाशा |
                  एक सिद्धि परलोके वासा ||
एक सिद्धि कष्टि तन जारा |
                  एक सिद्धि तन हंस न्यारा ||
एक सिद्धि जल डूब न जाई |
                  एक सिद्धि जल पैर ना लाई ||
एक सिद्धि बहु चोले धारे |
                   एक सिद्धि ने तत्व विचारे ||
एक सिद्धि पांचो तत्व निरं |
                   एक सिद्धि जो बजर शरीरं ||
एक सिद्धि पीवे नहीं खाई |
                  एक सिद्धि जो गुप्त छिपाई ||
एक सिद्धि ब्रमंड चलावे |
                  एक सिद्धि सब नाद मिलावे ||  
एता खेल खिलारी खेले |
                  सोंह हंसा प्रगट वेले ||
चोबीसा कूं न दिल चावे |
                  सो हंसा शब्द अतीत कहावे ||  
परा सिद्धि पूर्ण पट रानी |
                   सत् लोक की कहूँ निशानी ||
सत् लोक सुख सागर पाया |
                  सतगुरु भेद कबीर लखाया ||
परम हंस देखो परवाना |
                  जन कहता दास गरीब दिवाना ||    
  
                                                 इस प्रकार आचार्य श्री.श्री १००८ गरीब दास जी महाराज जी ने अपने शिष्य श्री निर्मल दास जी को निमित बनाकर हम सब को उपदेश दिया है कि इन सिद्धियों के चक्कर में कभी मत पड़ना, इनसे आगे पूर्ण सिद्धि जिसे सिद्धियों की पटरानी कहते है उसके द्वारा ही हम जन्म-मरण के चक्कर से छुटकारा पा सकते है | यही सतलोक की प्राप्ति सतगुरु कबीर साहिब ने अपने हँसो को कराई | सबको उस परमपिता परमेश्वर का चिंतन करना चहिये | यदि तुम्हारा एक आधा वचन सत्य हो जाने से तुम अपने आप को सिद्ध मान लेते हो तो यह तुम्हारी बहुत बड़ी भूल है यदि तुम्हे २४ सिद्धियाँ भी प्राप्त हो जाये तो भी बिना आत्म ज्ञान के कल्याण नहीं होगा|
सतपुरुष कबीर दास जी महाराज की जय
आचार्य श्री.श्री.१००८ गरीब दास जी महाराज की जय
सतगुरु भूरीवाले जी महाराज की जय
छुडानी धाम धाम की जय  



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