Monday, August 21, 2017

सतगुरु श्री गरीबदास महाराज जी का परलोक गमन



सतगुरु श्री गरीबदास महाराज जी का परलोक गमन

छुड़ानी धाम में अवतार ले कर अनेक प्रकार की लीलाएं करते हुए, वाणी की रचना और प्रचार करते हुए, अनेका अनेक लोगों का उद्धार करते हुए जब सतगुरु गरीबदास जी की आयु ६१ वर्ष और तिन मास की हुई तो आप जी ने परमधाम पधारने का संकल्प किया | अपने सभी प्रेमी भक्त, संत और सेवकों को आज्ञा पत्र लिखकर भेजे की अगर कोई अंतिम दर्शन करना चाहता है तो वह फाल्गुन सुदी एकादशी को छुड़ानी में पहुंच जाए, क्यूंकि हमने उसदिन परमधाम पधारने का निश्चय किया है | जिसे भी पत्र मिला वह संदेश पाकर स्तब्ध रह गया | चित्त उदास हो गया, मन शोक से ग्रसित दो गया | जिसे जिसे भी संदेश मिला वह सभी कार्य छोड़कर महाराज श्री के दर्शन के लिए पहुंच गया | उस एकादशी के दिन बहुत अधिक मात्रा में लोग एकत्रित होने लगे | जिनमें साधू, संत, महापुरुष, भक्त और सत्संगी जन सभी शामिल थे |  उस समय ५०० से अधिक तो महाराज जी के वैरागी साधू थे |


सभी साधू, संत, महापुरुष, भक्त और सत्संगी जन बेरियों के बाग में एकत्रित हुए  और परामर्श करने लगे की महाराज जी से प्रार्थना करनी चाहिये की आप अपने परलोक गमन का विचार त्याग दें | आप अपनी संगत को छोड़कर ना जाएँ, आप के बिना आप की यह संगत अनाथ हो जाएगी | आप इसी तरह अपने पवित्र दर्शनों से संगत को निहाल करते रहें | एकत्रित हुए संप्रदाय ने स्वामी संतोष दास जी, जो की सभी में वरिष्ठ थे, को अपना प्रतिनिधि चुना और महराज जी से प्रार्थना करने के लिए उन्हें आगे करके सभी महराज जी के सामने उपस्थित हुए | सभी ने प्रेमपूर्वक दण्डवत् प्रणाम किया और हाथ जोड़कर आप के आगे खड़े हो गए | महाराज जी ने पूछा सभी इकठ्ठे होकर क्यूँ आए हो तो, स्वामी संतोष दास जी हाथ जोड़कर बोले,  हे दयानिधे ! सकल समुदाय की आप के चरणों में विनम्र प्रार्थना है की “हम सभी की आत्माएं अभी तक आप के पावन दर्शनों से तृप्त नहीं हुई है, इसलिए कृपा करके आप अभी अपने परलोक गमन का संकल्प त्याग दें” | हम सभी अभी कुछ और समय तक आप की मन मोहक मूर्त का दर्शन करना चाहते हैं | गुसाईं जी बोले और कितने दिन दर्शन करना चाहते हो ? ( महाराज जी की प्रेरणा से ) स्वामी संतोष दास जी के मुख से एका एक निकल गया की “महाराज जी हम सभी पर छह महीने की कृपा और कर दीजिये” | महाराज जी ने भी तथास्तु कह दिया और कहा की अब छह महीने बाद हम आप के कहने से भी ना रुकेंगे | इस तरह आप जी ने परलोक गमन की फाल्गुन सुदी एकादशी को परलोक गमन की तिथि को स्थगित कर दिया |

धीरे धीरे छह मास व्यतीत हो गए | जब भाद्रपद का मास शुरू हुआ तो महाराज जी ने सभी को फिर से आज्ञा पत्र भिजवाए की हमारे परलोक गमन का समय निकट आ गया है, जो भी दर्शन करना चाहे आकर दर्शन कर ले | पुन: सभी भक्त, साधू संत, महापुरुष छुड़ानी में महाराज जी के दर्शन के लिए एकत्रित होने लगे | महाराज जी के आज्ञा से सभी के लिए अटूट भण्डारा चलाया गया | भादों सुदी दूज को बेरियों वाले बाग में सभा का आयोजन किया गया | पूरा बाग आए हुए सत्संगियों से भर गया | सभा के बीच में सतगुरु जी का सिंहासन लगाया गया | कुछ लोग महाराज जी को बड़ी सज - धज के साथ सभा में ले आए | सतगुरु जी सिंहासन पर विराजमान होकर हंसों को अपना अंतिम संदेश देते हुए कहने लगे – हे भक्त जनों आप समय समय पर अपनी अवश्यकता के अनुसार सतपुरुष से कुछ न कुछ मांगते ही रहते हो | आप को इस बात का पूरा पूरा ज्ञान नहीं की सतपुरुष से क्या मांगना चाहिये | कौन सी वस्तु मांगने वाली है ? और कौन सी छोड़ने वाली है, यह मैं आप को बताता हूँ आप सभी जन इसे अपने हृदय में अच्छी तरह से बसा लो | इसे हमारा अंतिम संदेश समझ कर अपने मन में बसा लो, कभी भूलना नहीं | अगर आप लोग हमारे आदेशानुसार आचरण करोगे तो आप को चार पदार्थों की प्राप्ति होगी | जब तक जीवित रहोगे तब तक सुख भोगोगे और शरीर छोड़ने पर सद्गति प्राप्त होगी |

महाराज जी ने फिर विधि (अर्थात जो करना है या मांगना है) और निषेद (अर्थात जिन बातों का त्याग करना है ) रूप में दो शब्दों का उच्चारण किया | यह दोनों शब्द श्री ग्रन्थ साहिब में सर्व लक्षणा ग्रन्थ के नाम से संकलित है | यथा

|| अथ सर्व लक्षणा ग्रन्थ ||
 उत्तम कुल कर्तार दे, द्वादश भूषण संग । रूप द्रव्य दे दया करि, ज्ञान भजन सत्संग ।।१।।
शिल संतोष विवेक दे
, क्षमा दया एकतार । भाव भक्ति बैराग दे, नाम निरालम्ब सार ।।२।।
योग युक्ति जगदीश दे
, सूक्ष्म ध्यान दयाल । अकलि अकीन अजन्म जति, अष्ट सिद्धि नौ निधि ख्याल ।।३।।
स्वर्ग नरक बांचै नहीं
, मोक्ष बंधन से दूर । बड़ी गरीबी जगत में, संत चरण रज धूर ।।४।।
जीवत मुक्ता सो कहौ, आशा तृष्णा खण्ड । मन के जीते जीत है, क्यों भरमैं ब्रह्मण्ड ।।५।।
शाला कर्म शरीर में
, सतगुरू दिया लखाय । गरीबदास गलतान पद, नहीं आवैं नहीं जाय ।।६।।
                     

चौरासी की चाल क्या, मो सेती सुनि लेह । चोरी जारी करत हैं, जाके मौंहडे खेह ।।१।।
काम क्रोध मद लोभ लट
, छुटी रहै विकराल । क्रोध कसाई उर बसै, कुशब्द छुरा घर घाल ।।२।।
हर्ष शोक हैं श्वान गति
, संसा सर्प शरीर । राग द्वेष बड़ रोग हैं, जम के परे जंजीर ।।३।।
आशा तृष्णा नदी में
, डूबे तीनौं लोक । मनसा माया बिस्तरी, आत्म आत्म दोष ।।४।।
एक शत्रु एक मित्र है
, भूल पड़ी रे प्राण । जम की नगरी जाहिगा, शब्द हमारा मान ।।५।।
निंद्या बिंद्या छाडि दे
, संतों सूं कर प्रीत । भवसागर तिर जात है, जीवत मुक्ति अतीत ।।६।।
जे तेरे उपजै नहीं
, तो शब्द साखि सुनि लेह । साक्षीभूत संगीत है, जासे लावो नेह ।।७।।
स्वर्ग सात असमान पर
, भटकत है मन मुढ़ । खालिक तो खोया नहीं, इसी महल में ढूंढ़ ।।८।।
कर्म भर्म भारी लगे
, संसा सूल बबूल । डाली पांनौं डोलते, परसत नांही मूल ।।९।।
श्वासा ही में सार पद
, पद में श्वासा सार । दम देही का खोज कर, आवागवन निवार ।।१०।।
बिन सतगुरू पावै नहीं
, खालिक खोज विचार । चौरासी जग जात है, चीन्हत नांही सार ।।११।।
मरद गर्द में मिल गये
, रावण से रणधीर । कंस केश चाणूर से, हिरणाकुश बलबीर ।।१२।।
तेरी क्या बुनियाद है
, जीव जन्म धर लेत । गरीबदास हरी नाम बिन, खाली परसी खेत ।।१३।।

इस प्रकार अंतिम संदेश देते देते शाम के चार बज गए | तब आप जी ने कहा की आप के अनुरोध पर हमने अपने संकल्प से अधिक छ: मास आप को अधिक दर्शन दिया है | आप अभी हमें रोकने का प्रयत्न ना करना क्यूंकि हम अब आप के कहने से रुकेंगे नहीं | अब हमारे गमन का समय हो गया है, इसलिए हमारी चिता तैयार की जाए |
आपके मुख से इस प्रकार की बात सूनकर समस्त जनसमूह का हृदय काप उठा, सभी सुन्न रह गए | सभी के आँखों में आंसू भर आए | लेकिन आप की आज्ञा का उलंघन करना भी कठिन था इसलिए सेवकों ने भारी मन से जिस स्थान पर आज छतरी साहिब है इसी स्थान पर चंदन की चिता का आयोजन किया | साथ ही घृत आदि सकल सुगन्धित सामग्री इकट्ठी की | बंदिछोड जी सभी सत्संगियों के साथ उठकर चिता भूमि पर आ गए | महाराज जी को स्नान करवाया गया | स्नान करने के बाद आप नए वस्त्र पहनकर चंदन की चिता पर जाकर विराजमान हो गये और एक चद्दर ओढ़कर सो गए | आप जी ने जैतराम जी को अग्नि लगाने की आज्ञा प्रदान की | जैतराम जी ने भारी मन से आप जी की आज्ञा का पालन किया | उपस्तिथ जन समुह की आँखों से आंसू निकलने लगे | हृदय विलाप करने लगा | सभी को अत्यंत दुःख हुआ की अभी हमें महाराज जी के दर्शनों का लाभ प्राप्त नहीं होगा |
चौथे दिन परिवार और सत्संगी जन मिलकर फूल (अस्थियाँ) चुगने के लिए चिता पर गए तो चिता की भस्म में से कोई अस्थि नहीं मिली | सतगुरु जी का शरीर पंच भौतिक तत्वों से नहीं बना था उनका स्वरुप तो ज्योतिमय था, इसलिए अस्थियाँ प्राप्त होना का प्रश्न ही नहीं था |
सतगुरु जी के उच्चकोटि के महापुरुष शिष्य जिनकी संख्या लगभग सवा सौ थी, सभी ने मिलकर संप्रदाय की मर्यादा स्थापित करने के लिए श्री ग्रन्थ साहिब जी का प्रकाश करके पाठ आरंभ कर दिया | सत्रह्मी वाले दिन सभी संत और सेवक एकत्रित हुए | श्री ग्रन्थ साहिब जी का पाठ समाप्त करके, प्रेमपूर्वक बड़ी धूम धाम के साथ वाणी को विधिपूर्वक भोग लगाकर महाराज जी का पूजन किया गया |
सारे संप्रदाय ने मिलकर महाराज जी की गुरु गद्दी का तिलक देने की चर्चा की और सतगुरु जी के जेष्ठ पुत्र श्री स्वामी जैतराम जी को तिलक देने का निर्णय हुआ | लेकिन माता जी की आज्ञा को शिरोधार्य करते हुए आप जी ने गद्दी का अधिकार अपने छोटे भाई तुरतीराम जी को दे दिया | संप्रदाय ने मिल कर तुरती राम जी को गद्दी का तिलक देकर श्री महंत बना दिया तथा भेंट चढ़ाकर उनका आदर सत्कार किया |
जिस स्थान पर महाराज जी की चिता को अग्नि दि गई थी उस स्थान की राख को एकत्रित करके एक मटके में भर लिया गया और चिता के स्थान पर एक चबुतरा बनाकर उस पर उस घट (मटके) को स्थापित करके उसपर समाधी बना दि गई | नित्यप्रति इस स्मारक की धूप दीप और आरती होने लगी | और इसी स्थान पर वार्षिक मेला लगने लगा | जिसमे दूर दूर से सत्संगी जन आकर महाराज जी को अपनी श्रद्धा के पुष्प अर्पित करने लगे |

|| सत साहिब ||

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