अगाध रमैंणी प्रसंग
एक नाथ संप्रदाय के रामनाथ
नाम के सिद्ध थे जो योग विद्या के जानकर थे | वह पूरे भारत में
भ्रमण करते रहते और जहां भी किसी महापुरुष के बारे में सुनते तो उनकी परीक्षा लेने
के लिए उनसे योग साधना के प्रश्न किया करते | सतगुरु गरीबदास जी के यश को सुनकर आप
उनकी परीक्षा लेने हेतु छुडानी आए | महाराज जी के दरबार में पहुँचे और “ आदेश”
कहकर अभिवादन किया | महाराज जी ने शिष्टाचार पूर्वक सिद्ध जी का आदर सत्कार किया और
आसन देकर उचित स्थान पर बिठाया | जलपान के बाद कुशल क्षेम पूछा | उपरन्त सिद्ध जी
ने ज्ञान की बाते अराभ कर दीं | महाराज जी और सिद्ध जी के बीच जो ज्ञान की बातें
हुई वह महाराज जी की बाणी में “ आगाध रमैंणी” के नाम से संग्रहित हैं | ज्ञान की
बातें करते करते सिद्ध जी ने महाराज जी से कहा की आप सुन्न अर्थात तत्व शुन्य की
व्याख्या करके बताओ |
महाराज जी ने कहा
ॐ सुन्न धौं औधू,
सुन्न कहां से आई | जो भनभी सो गोद खिलाई || १ ||
हे अवधू ॐ (सत) सुन्न है | परन्तु पता नहीं तुम्हारी यह सुन्न कहां से
आई है | तुम जिस सुन्न का नाम लेते हो, यह तो तुम्हारी कपोल कल्पित है |
अवधू ने कहा तो आप बताइये
फिर आप की सत्य सुन्न कैसी है ?
बाजै जोग लहे निज
तूरं | पारब्रह्म बानी निज नूरं || २ ||
हे अवधु! उस सुन्न को योग
के द्वारा ही जाना जा सकता है | वहां पर बिना किसी के बजाये अनहद धुन हो रही है,
जो पारब्रह्म की वाणी है | और वहां पर
पारब्रह्म का नूर जगमगा रहा है |
कौन सुंन कौन की
चेली | कौन नाद से रहै अकेली || ३३ ||
कौन सुंन किह
जुगते जाई | जाकूँ बूढ़ी कहूँ क तरनी भाई || ४ ||
सतगुरु जी बोले तुम अपनी
जिस सुन्न का वर्णन कर रहे हो वह तुम्हारी सुन्न कैसी है ? उसे किस ने प्रकट किया ?
उसका कौन से नाद में निवास है ? उस सुन्न का नाम क्या है और उस सुन्न तक कैसे
पहुँचा जाता है ? यह जो आप की सुन्न है वह कोई नई सुन्न है या पुरातन ?
इस तरह पूछने पर अवधू ने
कोई जवाव नहीं दिया तो की
जाका अलख निरंजन
पार ना पाया | सो बानी हमरा गुरु ल्याया || ५ ||
महारज जी आगे बोले की यह जो
हमारी सुन्न है वह अलख है इसका भेद काल निरंजन भी नहीं जान सकता | हमने अपने
सतगुरु के उपदेश से इसे जाना है |
कहौ धौं पारब्रह्म
का कौन पसारा | कौन नाद जो सुंन से न्यारा || ६ ||
सुंन सोई जो सुंन
में बोले | कौन सुंन की ताली खोल्हे || ७ ||
अवधू बोले – यह तो बताओ की
पार ब्रह्म का ठिकाना कौन सा है ? ऐसा कौन सा नाद है जो इस
पिण्ड और ब्रह्मंड से अलग है ? इस सुन्न
का भेद कौन खोल सकता है ?
इस पर सतगुरु जी बोले की
क्या ताली बिच
मारग पईया | छिन में चेटक लागै भईया || ८
||
सर्व लोक की माया
त्यागे | ममता टूटे गृह बैरागे || ९ ||
दीन दुनी से
होइगा न्यारा | सोई पावैगा सुन पसारा || १० ||
सिर्फ भेद जान लेने से क्या
लाभ ? यह जो चेटक रुपी माया है यह फिर से
इस भेद को भुला देगी | जब तक उसे प्राप्त
नहीं किया जाता तब तक कोई लाभ नहीं | इसे
पाने के लिए जीव सब से पहले संसार के समस्त पदार्थों का मोह त्यागे | फिर संसार से
ममत्व टूट जाने पर उसमे वैराग उत्पन्न होगा | इस तरह वह संसार और संसार के धर्मो
से अलग (वीतराग) हो जाएगा | जो ऐसा वीतराग महापुरुष होगा वही इस सत्य सुन्न को
प्राप्त कर सकता है | लेकिन इसे प्राप्त करना इनता आसान नहीं है क्यूंकि
पदम जन्म जो
ब्रह्मा धारे | तो इस सुंन नाहीं प्रकारे || ११ ||
विष्णु नाम है सत
सतेसा | सत सुन्न से नाहीं भेटा || १२ ||
सतानवें बेर शिव
शंकर धाया | सत सुंन का मरम न पाया || १३ ||
ब्रह्मा जी ने पदम (एक
प्रकार की संख्या ) जन्मों तक प्रयत्न किया लेकिन इस सुन्न को प्राप्त नहीं कर सके
| लोग भगवान विष्णु के नाम को नौका की तरह इस संसार सागर से पार उतारने वाला मानते
है | लेकिन वह विष्णु भी इस सुन्न को प्राप्त नहीं हुए | शंकर भगवन ने सतानवे (७९)
बार प्रयत्न किया लेकिन इस सुन्न का मर्म नहीं जान सके | क्योंकि
जैसे बटक बीज में
बड़की छांहीं | ऐसे गुण इन्द्री मन मांहीं || १४ ||
जैसे वट वृक्ष के बीज
में पूरा वट वृक्ष समाया हुआ होता है ऐसे
ही मन यानि अंत: करण में सभी इन्द्रियों के विषय सूक्ष्म
रूप से समाए रहते हैं | जिसके कारण मन सत्य सुन्न की तरफ नहीं जा पाता | लेकिन
शब्द अतीत सिंध
की सैली | मिटे बुदबुदा फ़ोकट फैली || १५ ||
मन वाणी से परे जो शब्द
ब्रह्म का मार्ग है उसे सुरति निरति के द्वारा जाना जा सकता है और जीव सत्य सुन्न
तक पहुंच सकता है | इसे जान लेने के बाद माया का यह संसार पानी के बुदबुदे की तरह
छन भंगुर प्रतीत होता है |
महाराज जी का उपदेश सुनने
पर अवधू जी के मन में शंका उपस्थित हुई की क्या यह शब्द ब्रह्म पिण्ड ब्रह्मंड से
न्यारा है या इसी में विलीन है ? जिसका निराकरण महाराज जी ने अगली पंक्ति में किया
| की
क्या न्यारा क्या
मध्य बताऊँ | ---
सतगुरु जी बोले की अलग या
मध्य कैसे कहूँ वह तो सर्व व्यापक है |
---सुकृत नाम कौन
विधि पाऊँ || १६ ||
इस पर अवधू जी ने कहा की इस
सुकृत नाम को मैं कैसे प्राप्त कर सकता हूँ |
सुकृत नाम सुरति
की डोरी | निरति निरालंब पुरुष किसोरी || १७ ||
महाराज जी ने कहा की वह
पतित पावन सुकृत निज नाम है और सुरति निरति के द्वारा उसकी साधना की जाती है| तब जाकर निरालंब अविगत ब्रह्म की प्राप्ति होती
है |
अवधू ने कहा महाराज जी
सुन्न कितनी प्रकार की है ?
सकल सुंन, महा
सुंन, अभै सुंन, अलील सुंन, अजोख सुंन, सार सुंन, सत सुंन || १८ ||
महाराज जी ने कहा की १. सकल
सुंन, २. महा सुंन, ३. अभै सुंन, ४. अलील सुंन, ५. अजोख सुंन, ६. सार सुंन और ७. सत
सुंन | यह सात प्रकार की सुन्न हैं |
अवधू जी ने आगे पूछा की
क्या सभी सुन्न में सत पुरुष स्वयं विराजमान है ? क्या वहां पर कोई महापुरुष
पहुँचा है ? वह स्थान कैसा है और उसकी क्या निशानी है ?
गरीब, सत
सुंन में सत है, और सुंन प्रकाश |
जहां कबीरा मठ रच्या, कोई पौंहचे बिरला दास || १९ ||
सेत गुमट की सेव
है, ज्यूं कुंजी के बैंन |
दास गरीब जहां
रत्ते, तहां पाया सुख चैंन || २० ||
सतगुरु जी बोले की सत पुरुष
तो सत सुन्न में ही विराजमान है बाकि सभी सुन्न में उनका प्रकाश विद्यमान है
| वहां पर कबीर साहिब जी विशेष रूप से
विद्यमान हैं | कोई विरला ही साधक वहां पर पहुंच सकता है | उस सुन्न में श्वेत
गुम्बज है वहीँ पर सत पुरुष का निवास है | महाराज जी बोले की हम सदा उसी में तल्लीन रहते है | वहीँ पर परम
आनंद है |
नाथ जी सतगुरु गरिब दास जी के उत्तरों से संतुष्ट हो गये और प्रेम पूर्वक
नमस्कार करके वहां से चले गए |
|| सत साहिब ||
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