Wednesday, April 6, 2016

सतगुरु हंस उधारन आए

एक समय अलमोड़ा जो की उत्तरप्रदेश में एक पर्वतीय क्षेत्र है, वहां पर एक फलाहारी सिद्ध मनसाराम जी रहते थे | उन्होंने सतगुरु गरीबदास जी के बारे में पता लागा तो उनके मन में कुछ प्रश्न उठ खड़े हुए | उनके एक शिष्य थे हांडीभडंग जो देशाटन करते रहते थे | मनसाराम जी ने उन्हें अपने प्रश्नों के समाधान हेतु सतगुरु जी से मिलने के लिए भेजा | हांडीभडंग पूर्व से पश्चिम दिशा की तरफ घूमते घूमते छुडानी आ पहुँचे |


जब सतगुरु जी के पास आये तो दरबार में बहुत से लोग मौजूद थे | हांडीभडंग दण्डवत प्रणाम करके बैठ गये और अपने गुरु मनसाराम की ओर से बारंबार दण्डवत प्रणाम सहित बंदगी कहा तथा आने का प्रयोजन बताया |
हांडीभडंग कहने लगे हे सतगुरु आप इस छोटी सि बस्ती में क्यूँ रह रहे हो ? यहां रहने वाले इन कलियुग के प्राणियों को ना तो ज्ञान की परख है,  ना ध्यान की और ना ही यह लोग आपके वचन और वाणी को समझ पाते हैं | यह कलयुगी लोग भय से व्यापत है, ना ही इन में कोई बुद्धिमान और विवेकशील है | ना ही इन में शील, संतोष, दया इत्यादी गुण हैं और ना ही यह धर्म का अनुसरण करते है तो फिर आप यहां किस कारण से आये हैं ?
इन कलयुगी जीवों के व्यवहार कुटिल हैं, यह संसार अंधा है | यह कलियुगी लोग चोरी करके प्रसन्न होते हैं, लोभ मोह से ग्रसित हैं, विषयों में डूबे हुए हैं | समझाने से भी नहीं समझते | यह उलटी चाल चलने वाले कलियुगी जिव आप के ज्ञान को कैसे जान सकेंगे ?
अन्य सभी का मार्ग सीधा और सरल है लेकिन आप का पंथ उलटा है | आप का पंथ बहुत सूक्ष्म है, दृष्टि में नहीं आता, और सभी पन्थो से उपर है, मन और बुद्धि की पहुंच से परे है लेकिन यह संसार तो अपने ही भाव में मस्त है | और फिर आप की संगत के बिना आपकी अकथ कथा को कोई नहीं जान सकता चाहे कोई कितना भी ज्ञानी क्यूँ ना हो |  इस प्रकार हांडीभडंग ने अपने गुरु का संदेश कह सुनाया |

संदेश सुनकर सतगुरु जी ने उन्हें समझाते हुए कहा की :-
सतगुरु असंभव को भी संभव कर देते हैं | यह बात अनाथ जिव नहीं जानते | यह लोग कर्म काण्ड से बंधे हुए हैं, ज्ञान ध्यान को यह नहीं जानते | मैं इन कर्म काण्डी जीवों को कर्म काण्ड के बंधन से छुडवा कर शुद्ध परा भक्ति में इन्हें पक्का करता हूँ, जिन भ्रमों से यह लोग जकड़े गये हैं मैं उनका खंडन करके इन्हें उन भ्रमों से मुक्ति दिलवाता हूँ | काम क्रोध मोह और लोभ जैसे प्रबल शत्रुओं को मैं उपदेश देकर ख़तम करता हूँ | शील और संयम के उपदेश के द्वारा मैं इनकी आशा, तृष्णा, ममत्व और चिंता को समाप्त कर देता हूँ, हर्ष और शोक जैसे रोगों को मिटा देता हूँ |

माता के बिना बालक जीवित नहीं रह सकता | जैसे माता अपने बालक का हर समय पालन पोषण करती है, दिन रात उसकी सेवा करती है, उसका ध्यान रखती है | लेकिन इन सब बातों की बालक को तो कोई सुध नहीं होती | उसी तरह गुरु भी अपने बालक समान शिष्य का प्रतिपालन करते हैं, उसका मार्गदर्शन करते हैं | हालाँकि शिष्य इस बात को समझ नहीं पाता की गुरु जी मेरा हित कर रहे हैं क्यूंकि वह तो बालक के समान भोला है |

जैसे बच्चे को माता बार बार समझाए तो बच्चा समझ जाता है उसी तरह गुरु के बार बार समझाने पर शिष्य समझ जाता है | अगर ना समझाएं तो कैसे समझेगा | माता बालक को बार बार समझाती  क्यूँ की वह जानती है की किसी दिन यह बालक बड़ा हो कर समझदार हो जाएगा | ऐसे ही माता की तरह सतगुरु सदा सहाई रहते हैं, पतितों का उद्धार करने के लिए ही आते हैं, और भक्ति रुपी नाव में अपने हंसों को भर कर इस भवसागर से पार करके सूरत नगर ( सतलोक ) धाम में पहुँचा देते हैं |

सतगुरु अपने हंसों के अंदर भक्ति का बीज डालकर उनका उद्धार कर देते हैं | भक्ति के प्रताप से हीरे और लालों के समान हुए अपने हंसों को इस जग में से भक्ति रुपी नौका में बिठा कर पार लागा देते हैं |  

सतगुरु अपने हंसों के कारण इस संसार में बारंबार आते हैं, जीवों को नाम से जोड़ते हैं, उनके अन्दर भक्ति को दृढ़ करते हैं |

लोगों को यह पता ही नहीं की सतगुरु जगत में क्यूँ आते हैं ?  यह लोग तो साखि शब्द, कथा इत्यादी में उरझे हुए है अर्थात उस के तत्व को ग्रहण ना करके सिर्फ सुनने का ही आनंद लेते हैं | कोई सिर्फ पुस्तकी ज्ञान अर्जित करने में उलझा हुआ है, कोई ध्यान में उलझा हुआ है, कोई षटकर्मों में उलझा हुआ है | योगेश्वर योग करने में ही उलझे हुए है, कोई मुद्राओं की साधना कर रहा है | कोई काव्य में उलझा है, कोई कथा वर्णन में लागा हुआ है लेकिन यह लोग सतगुरु के निकट नहीं जाते |

साखी शब्द में जो लोग उलझे हुए हैं उनके अंदर भक्ति प्रगट नहीं होती | जो लोग सतगुरु से जुड़े हैं उनका आना जाना मिट जाता है | सतगुरु से जुड़े लोग अगर संसार में जन्म लेते हैं तो किसी ऐसे घर में जन्म लेते है जहां पर उनकी भक्ति और दृढ़ हो सके फिर मैं उन्हें अपना नाम, सत्संग देकर अपने हृदय में अभय पद दे देता हूँ | वह फिर संसार में नहीं भटकते |

गरीबदास जी महाराज जी ने कहा की सतगुरु के संपर्क में आने पर यह संसारी जिव उसी तरह हंसों में परिवर्तित हो जाते हैं जैसे पारस के संपर्क में आने से लोहा कंचन हो जाता है | चाहे लोहा जाने अनजाने ही पारस के संपर्क में आए तो भी वह कंचन ही हो जाता है | इसी तरह भले कोई जाने अनजाने सतगुरु से जुड़ता है तो वह जिव हंस बन जाता है | हमने इसीलिए यह अवतार धारण किया है |

आचार्य जी का उत्तर सुनकर हांडीभडंग ने उन्हें प्रणाम किया और बोले :
हे दिन दयाल आप अपनी दया दृष्टि से ही निहाल कर देते हैं |
हे दिन दयाल दया के सागर आप भूले भटके कर्मों के बंधन में बंधे जीवों को कर्मकांड से छुटकारा दिला कर भक्ति को दृढ़ करने आए हैं | मन माया के जाल में फंसे यह जिव अपने कर्मों का फल भोग रहे हैं | सत, रज और तम इन तीनों गुणों की धारा में सभी जिव बहे जा रहे हैं | मन माया ने इन भूले भटके जीवों को अपने बस में कर लिया है, आप के सिवा इन्हें कौन छुड़ा सकता है | आप अपने हंसों को इस जग से छुड़ाने के कारण ही आए हो | आप धन्य हैं |

इस प्रकार अनेक प्रकार से आचार्य जी की स्तुति कर उन्हें बारंबार प्रणाम करके आप वहां से अपने स्थान को चले गये |
(This article is send by Dr.Ram Kumar, from Nasik)

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