Sunday, December 11, 2016

सम्राट के दरबार में गाय को जीवित करने की कसनी


                          सम्राट सिकन्दर के आदेश पर एक गाय को दरबार में लाया गया। सिकन्दर  ने कसाइयों द्वारा उस गाय की गर्दन को कटवा कर धड़ से अलग करा दिया और कबीर साहिब से कहा कि कबीर तुम अगर खुदा-स्वरूप हो, खुदाई ताकत रखते हो और सर्वशक्तिमान तुम्हारा राम हर ववत तुम्हारे साथ रहता हैतो तुम इस मृत गाय को जीवित करके दिखाओ, अगर तुमने इस मृत गाय को जीवित कर दिया तो तुम्हारी सारी तकसीर माफ कर दी जाएगी वरना गाय की तरह ही तुम्हारे जिस्म के भी टुकडे कर दिए जाएंगे 



सिकन्दर की इस बात पर कबीर साहिब ने गाय के कटे हुए शरीर को थपथपाया और चुटकी बजा कर कहा कि है गऊ माता तुम तो स्वयं जीव प्रतिपालक हो फिर तुम्हे कौन मार सकता है। खडी हो जाओं। इसी के साथ गाय की गर्दन उसके शरीर से जुड़ गई और गाय जीवित होकर खडी हो गई । इस करिश्मे को देखकर दरबार में उपस्थित कबीर साहिब के विरोधी , काजी मुल्ला और ब्राह्मणों के होश फाख्ता हो गए और सम्राट सिकन्दर ने भी हैरत में दाँतो तले अपनी उँगली दबा ली। बाद में कबीर साहिब ने उसी गाय का दूध दुह कर पिया। ये सारा मंजर देखकर पीर शेखतकी भी हैरान रह गया।

काजी-मुल्ला और ब्राह्मण दरबार से उठ-उठकर बाहर चले गए। कबीर साहिब के शिष्य, भक्त एवं अनुयायियों में खुशी की लहर दौड़ गई। उनमें से कुछ भक्त तुरन्त पालकी लेकर आ गए और कबीर साहिब उस पालकी में बैठकर सम्राट सिकन्दर को उहापोह की स्थिति में दरबार के मध्य छोड़कर. वहीं से अपनी कुटिया के लिए चले गए।


बन्दीछोड़ गरीबदास साहिब जी ने इस सम्पूर्ण घटना का वर्णन अपनी वाणी में निम्न प्रकार से किया है-
शाह सिकन्दर के गए, काजी पटकि कुरानगरीब दास उस जुलहदी पर, हो है खेंचातान ।
तोरा शरै उठा दिया, काजी बोले योंगरीबदास पगडी पटकि,  अलख अलाह मैं हों ।
दस अहदी त्तलबां हूई, यकरि जुल्ह्दी ल्यावगरीबदास उस कुटिन कोकी मारत नहीं संकाय ।
अहदी ले गये बांधि करिशाह सिकन्दर पासगरीबदास काजी-मुल्लां, पगरी बहें अकाश ।
काजी पंच हजार हैं, मुल्ला पीटें शीशगरीबदास योह जुलहदी, काफिर बिसवे बीस ।
मिहर दया इसकै नहीं, मटटी मांस न खाय, गरीबदास गूदा तलो, मोमन ल्योह बुलाय ।
मोमन बी पकरे गये, संग कबीरा साथगरीबदास उस शरै मै, पकरि पछारी गाय ।
शाह सिकन्दर बोलता, कहि कबीर तू कौनगरीबदास गुजरै नहीं, कैसे बैठ्या मोन ।
हम ही अलख अल्लाह हैं, कुतुब गोस अरु पीरगरीबदास खालिक धनी, हमरा नाम कबीर ।
मैं कबीर सरबंग हूँ, सकल हमारी जाति, गरीबदास पिण्ड प्राण में , जुगन-जुरान संग साथ ।
गऊ पकरि बिसमिल करी, दरगाह खण्ड वजूदगरीबदास उस गऊ का, पीवै जुलहा दूध ।
चुटकी तारी थाप दे, गऊ जिलाईं बेगिगरीबदास दूहन लगे, दूध भरी है देग ।
योह परचा प्रथम भया, शाह सिकन्दर पासगरीबदास काजी मुल्ला, हो गए बहुत उदास ।
काशी उमटी सब खडी, मोमन करी सलामगरीबदास मुजरा करै,  माता सिहर अलाम ।
ताना-बाना न बुने, अधरि चिसम जोडंतगरीबदास बहुरूप धरि, मोरया नहीं मुरंत ।
शाह सिकन्दर देखि करि, बहोत भये मुसकीनगरीबदास गति शेर की, थरकै दोनों चीन ।।

कबीर साहिब के दरबार से जाने के बादसम्राट सिकन्दर ने अपने पीर शेखतकी से पूछा कि ये सब कैसा करिश्मा था? क्या कबीर वाकई खुदाई ताकत रखता है। इस पर पीर शेखतकी ने कहा कि हमारे पाक कुरान शरीफ में साफ लिखा है कि कोई भी मनुष्य खुदा की बराबरी नहीं कर सकता, खुदा ही जहाँ का बेताज बादशाह हैं। कबीर तो उसके चरण की धुल भी नहीं है। वह महज जादूगर है और उसने आज जो करिश्मा दिखाया हैवह उसका जादुई करिश्मा था। इस बात पर सम्राट सिकन्दर ने अपनी नाराजगी जाहिर करके पीर शेखतकी से कहा कि अगर कबीर जादूगर हैतो आप किस मर्ज का इलाज हैं। क्या एक जादूगर के जादुई करिश्मे को रोकने की काबलियतहमारे पीर में नहीं हैं? इतना कहकर सिकन्दर अपने सिंहासन से उठकर चला गया। 

इस जगत के रचियता तो हमारे सत्यपुरुष सतगुरु कबीर साहिब जी हैउनके आदेश के बिना तो एक पत्ता तक नही हिल सकता। वो जन्म-मरण के बंधन से छुटाने वाले है। इस धराधर पर अपने दुसरे स्वरूप बन्दीछोड गरीबदास साहिब जी के रूप में अवतरित हुए और जग-कल्याण के लिए अमृतमई वाणी की रचना की जो हमारे समक्ष श्री ग्रंथ साहिब जी के रूप है और सतगुरु जी एक जगह फरमाते है कि:
गरीब, हम पशुवा जन जीव हैंसतगुरू जाति भृंग।
                          मुरदे से जिंदा करैपलट धरत हैं अंग ।। 

यह लेख बन्दीछोड़ गरीबदास साहिब जी के जीवन चरित्र परम योगेश्वर संत गरीबदास से लिया गया है जिसको महर्षि गंगादास जी महाराज ने छिपवाया है.

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