Tuesday, December 1, 2015

महाराज भुरीवालों के वट्टे


बन्दीछोड़ गरीब दास साहिब जी अपनी वाणी में फरमाते है कि:
गरीब, आजिज मेरे आसरे, मैं आजीज के पास । 
          गैल गैल लाग्या फिरुँ, जब लग धरनि आकाश ।। 
      परमात्मा सदैव अपने भक्तो की रक्षा करता है । हमे सदैव ही परमात्मा की भक्ति में लीन रहना चहिये, तभी मनुष्य का उद्धार हो सकता है ।
                            एक बार की बात है कि चौदा ग्राम पंजाब में श्रीराम नामक एक व्यक्ति रहता था । वह सतगुरु

ब्रह्मसागर जी महाराज भुरीवालों का निष्ठावान सेवक था । जब श्रीराम विवाह योग्य हुआ, तब श्रीराम  के माता-पिता ने उनका विवाह कराया ।  कुछ समय बाद जब श्रीराम जी की पहली सन्तान होने वाली थी । उससे एक महीना पहले श्रीराम की माता जी देहडू ग्राम वाली कुटिया में सतगुरु ब्रह्मसागर जी महाराज भुरीवालों के दर्शन करने आई हुई थी । उस समय महाराज जी देहडू ग्राम वाली कुटिया में थे । सतगुरु ब्रह्मसागर जी महाराज भुरीवालों ने श्रीराम की माता जी से कहा कि "अगर श्रीराम को अपनी धर्म पत्नी की जरूरत है तो वह उसे हमारे पास ले आए । अगर वह पैदल नही चल सकती तो उसे गड्डे पर ले आएगा" ।
                        माताजी ने आकर श्रीराम जी को बताया कि "महाराज जी ने इस प्रकार कहा है" । श्रीराम  सतगुरु ब्रह्मसागर जी महाराज भुरीवालों के इशारे को न समझ सके और अपनी पत्नी को लेकर महाराज जी के पास न गये । समय आने पर श्रीराम जी के घर लड़के का जन्म हुआ, परन्तु कुछ दिन बाद उनकी धर्मपत्नी का देहांत हो गया । श्रीराम जी बच्चे को पालते रहे । इस समय सतगुरु ब्रह्मसागर जी महाराज छुड़ानी धाम पहुंच लिए थे । वह छुड़ानी धाम की सेवा करवाने के लिए, संगत को साथ ले कर छुड़ानी धाम में थे । श्रीराम जी भी बच्चे को साथ लेकर छुड़ानी धाम चले गए थे । इस समय लड़के की उम्र सिर्फ 5 महीने थी । लड़का बीमार हुआ और छुड़ानी धाम में ही उसकी मृत्यु हो गयी थी । जब लड़के को श्मशान में दफना कर आये, तो श्रीराम सतगुरु ब्रह्मसागर जी महाराज के आगे दण्डवत प्रणाम करके बहुत जोर से रोने लगा । तब सतगुरु ब्रह्मसागर जी महाराज भुरीवालों ने कहा "श्रीराम! तू रो मत, जाकर खाना खा ले"। श्रीराम जी ने कहा कि "दुःख के कारण मुझसे खाना नही खाया जा रहा"। महाराज जी ने कहा कि "देख श्रीराम पहले तूने हमारी आज्ञा नही मानी इसलिए तेरी पत्नी और बेटा मर गये । अब हमारी आज्ञा मन कर खाना खा ले"। श्रीराम ने सतगुरु ब्रह्मसागर जी महाराज भुरीवालों की आज्ञा मानकर 2-3 ग्रास खाना खा लिया ।
                                                       सतगुरु ब्रह्मसागर जी महाराज श्रीराम पर प्रसन हो गए और बोले कि "श्रीराम, तू रो मत । तेरे घर तो वट्टेयों (पत्थर) की तरह लड़के होंगे"।  सतगुरु ब्रह्मसागर जी महाराज तो अंतर्यामी थे, उनके वचन सत्य हुये । श्रीराम का दूसरा विवाह हुआ । सतगुरु ब्रह्मसागर जी महाराज भुरीवालों की कृपा हुई । चार लड़के हुए । वर्तमान में भी श्रीराम के लड़कों को गाँव के व बाहर के लोग महाराज भुरीवालों के वट्टे कहते है । उन सभी के शरीर वट्टे (पत्थर) की तरह मजबूत है ।यह सब महाराज जी की आज्ञा पालन करने का फल है । सतगुरु ब्रह्मसागर जी महाराज भुरीवालों के दरबार से कभी कोई खाली हाथ नही गया । सतगुरु देव जी ने बंदीछोड़ गरीब दास साहिब जी की वाणी का अथक प्रचार किया । आज उसी प्रचार के फल स्वरूप बंदीछोड़ गरीब दास साहिब जी की वाणी के इतने अखण्ड पाठ समय-समय पर गरीबदासी आश्रमो व कुटियाओं में हो रहे है ।
बन्दीछोड़ गरीब दास साहिब जी की वाणी :
 || अथ राग काफी || 
समझा है तो सिर धर पाव, बहुरि नहीं है ऐसा दाव || टेक ||
अनगिन शीश मिले हैं धूर, आब कै ले मिल तखत हजूर || १ ||
सिर के साटै निकट नजीक, सतगुरु कूँकै सुन ले सीख || २ ||
सुत रू पुत्री गृह नारी नेह, जम किंकर मुख देंगे खेह || ३ ||
लोक लाज कुल की मर्याद, यह बजुरगी बिगड़े काज || ४ ||
अधर धार पर खेल हमार, कायर गिरि हैं अनंत अपार || ५ ||
मक्रतार मीहीं मैदान, पहुंचे सूरे संत सुजान || ६ ||
बहते कूँ बह जान न देह, सतगुरु पूरे खेवट हेह || ७ || 
शब्द अतीत हमारी जात, गरीबदास गूदा न गात || ८ || 


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