एक बार की बात है कि रामगोपाल
नाम का एक व्यक्ति सतगुरु ब्रह्मसागर जी महाराज
भुरीवालो का सेवक था | रामगोपाल की सतगुरु भुरीवालों के चरणों में पूर्ण निष्ठा
थी | रामगोपाल निरंतर सतगुरु जी के दर्शन करने जाया करता
था | एक बार की बात है कि सतगुरु जी चौदां वाली कुटिया में
ठहरे हुए थे | रामगोपाल को जब इस बात का पता चला तब वह सतगुरु जी के दर्शन करने के लिए अपने
एक और साथी को लेकर चौदां के लिये निकल पड़ा | जब रामगोपाल व उसका साथी कुटिया में
पहुंचे तब सतगुरु भुरीवालों जी थड़े पर बैठे थे | रामगोपाल ने सतगुरु जी के दर्शन किये और दण्डवत
प्रणाम किया, जब रामगोपाल प्रणाम करके उठा तब सतगुरु जी ने कहा की “रामगोपाल !
दिल्ली कब जायेगा?” |
सतगुरु जी की यह बात सुनकर रामगोपाल
बहुत हैरान हुआ और सोचने लगा कि “अभी तो हम दिल्ली से यँहा पहुंचे है और अभी सतगुरु जी वापिस जाने के लिए पूछ रहे
है, मै तो कई दिन यँहा रहने के लिए आया था” | फिर रामगोपाल जी ने कहा कि “सतगुरु जी, जब आपकी आज्ञा होगी तभी,
मै वापिस चला जाऊंगा” | तब महाराज जी ने सेवको को आदेश दिया कि “रामगोपाल को भोजन
कराया जाये” | रामगोपाल ने भोजन समाप्त करके जब वापिस महाराज जी के पास आया | तब फिर महाराज जी ने कहा कि “रामगोपाल ! दिल्ली कब जायेगा?” | रामगोपाल जी ने कहा कि “महाराज
जी, जब आपकी आज्ञा होगी, तभी मै वापिस चला जाऊंगा” | इस समय महाराज जी गुफा के चोतरे पर विराजमान थे और काफी संख्या में संगत बैठी
हुई थी | अचानक महाराज जी बोले “ओह ! कुत्ता हलक गया, कितने लोग काट दिये” |
उस समय महाराज जी के वचन किसी को समझ नही आ रहे थे की
महाराज जी किस बारे में बात कर रहे है, कि “कुत्ते ने किस को काटा है“ | पर किसी का भी साहस नही
हुआ की उलट कर महाराज जी से इस बारे में पूछे | तभी महाराज जी ने रामगोपाल से कहा कि “रामगोपाल, दिल्ली कब
जायेगा?” | रामगोपाल जी ने कहा की “महाराज जी, जब आपकी आज्ञा होगी” | तब सतगुरु जी ने कहा “तो ठीक है दर्शन हो गये, अब तू वापिस चला जा” | यह बात सुनते ही रामगोपाल
हक्का-बक्का रह गया | महाराज जी की आज्ञा मानकर उनको दण्डवत प्रणाम करके
रामगोपाल अपने साथी के साथ दिल्ली के लिए निकल पड़ा | रस्ते में सोच रहा था कि “पता
नही महाराज जी ने इतनी जल्दी हमे वापिस क्यों भेज दिया, पता नही क्या बात है” |
जब रामगोपाल घर पंहुचा तो
वह हैरान रह गया | उसके घर के बाहर बहुत भीड़ जमा थी | लोग तरह-तरह की बाते बोल
रहे थे कि “रामगोपाल के कुत्ते ने हलक कर कितने आदमियों को काट लिया है” | इस वजह से लोगो ने रामगोपाल के खिलाफ पुलिस में रिपोर्ट
लिखवाई | पुलिस महकमे में जान-पहचान होने के कारण रामगोपाल ने जाकर सारी बात एक बड़े
अफसर को बताई और फिर पुलिस ने लोगो को यह कह दिया कि “यह कुत्ता रामगोपाल का नही
था, काटने वाला तो आवारा कुत्ता था” | तब रामगोपाल जी को समझ आया की महाराज जी ने उसको क्यों
वापिस दिल्ली इतनी जल्दी भेजा था | महाराज जी तो अन्तर्यामी थे उनसे कोई बात नही छुपी थी | अगर रामगोपाल एक-दो दिन और वँहा रुक जाता तो यँहा दिल्ली में बात बिगड़ जाती | उसकी रक्षा करने के लिए ही सतगुरु जी ने उसको जल्दी वापिस भेज दिया था |
गरीब ज्ञान विचार विवेक बिन, क्यों रींकत खर गीध|
कहा होत हरि नाम से, जो मन नाहीं सीध ||
परमेश्वर के ज्ञान को बिना समझे, विवेक के द्वारा निर्णय किये बिना
तुम क्यों गधे(खर) और गीधों की तरह रिंक रहे हो ? हरि का नाम लेने
से क्या होगा अगर तुम्हारे मन में उसका निर्णय ही नहीं हुआ ?
गरीब समझि विचारे बोलना, समझि विचारे चाल |
समझि विचारे जागना, समझि विचारे ख्याल ||
महाराज जी कहते है की परमेश्वर को समझ कर और विचार करके ही उसके बारे में
बोलना चाहिए और उसीके बारे में सोचते और समझते हुए चलना चाहिए | उसीके बारे में
सोचते और समझते हुए जागना चाहिए | अपने ख्यालों में भी उसी के बारे में सोचना और
समझना चाहिए |
गरीब करै विचार समझि करि, खोज बुझ का खेल |
बिना मथे निकसै नहीं, है तिल अंदर तेल ||
परमेश्वर के ज्ञान को समझने के लिए उसके बारे में विचार करना चाहिए | परमेश्वर को
खोजना यानि के उसे बुझने/समझने जैसा ही है | जैसे तिल के अंदर का तेल बिना तिल को मथे नहीं निकलता उसी तरह परमेश्वर के
ज्ञान को मथे बिना समझे बिना परमेश्वर हाथ नहीं आता |
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