बन्दीछोड़ गरीब दास साहिब जी की स्मृति
में छतरी साहिब मंदिर छुड़ानी धाम में प्रतिवर्ष ३-३ दिनों के ३ भव्य मेलो का आयोजन
होता है | वैसाख शु० त्रयोदशी से पूर्णिमा तक (अवतार दिवस) | भादो अमावश्या से शु० दिवितीया तक (निर्वाण दिवस) | फाल्गुन शु० दशमी से
द्वादशी तक (किरपा पर्व) | फाल्गुन मेंले का समय था
| श्री सतगुरु ब्रह्म सागर जी महाराज
भुरीवालो की प्रेरणा से पंडित विशुद्धानन्द जी
ने सत्यपुरुष धाम श्री छुड़ानी धाम में बन्दीछोड़ गरीब दास साहिब जी की संगमरमर की
बड़ी ही सुन्दर प्रतिमा बनवाई | पंडित विशुद्धानन्द जी बड़े विद्वान और तपस्वी महापुरुष थे | सतगुरु ब्रह्म सागर जी महाराज
भुरीवालो ने अपनी मौजूदगी में पूरे विधि-विधान से प्रतिमा की पूजा व प्राण प्रतिष्ठा करवाई | फाल्गुन मेंले का समय था
|
श्री छुड़ानी धाम में पंजाब, दिल्ली,उत्तर प्रदेश, देश-विदेश जंहा-तंहा से संगत
सत्यपुरुष धाम श्री छतरी साहिब मंदिर छुड़ानी धाम में पहुंची हुई थी | तब किसी ने सतगुरु ब्रह्म सागर जी महाराज
भुरीवालो से पुछा कि “बन्दीछोड़ गरीब दास साहिब जी ने अपनी वाणी में मूर्ति-पूजा का
पुरजोर खंडन किया है और आपने यँहा उन्ही की मूर्ति बनवाकर पूजा शुरू करवा दी” | सतगुरु ब्रह्म सागर जी महाराज भुरीवालो ने यह बात
सुनते ही कहा “कोन कहता है की यह पत्थर की मूर्ति है? यह तो साक्षात् हमारे बन्दीछोड़
गरीब दास साहिब जी तेजपुंज के रूप में विराजमान है | हम उन्ही को
दण्डवत प्रणाम करते है, उन्ही को भोग लगते है | उन्ही की
पूजा करते है किसी पत्थर की मूर्ति को हम नही मानते और हमे तो कोई पत्थर की मूर्ति
नजर नही आती” |
प्रश्न पुछने वाले ने फिर सतगुरु ब्रह्म सागर जी महाराज
भुरीवालो से कहा कि “हमे तो बन्दीछोड़ गरीब दास
साहिब जी नजर नही आ रहे और हमे तो पत्थर की मूर्ति ही नजर आ रही है” | तब सतगुरु ब्रह्म सागर जी महाराज
भुरीवालो ने कहा कि “अरे ! तुम्हारे ह्रदय
पत्थर के हो रहे है और यदि तुम्हे विश्वास नही तो चलो हम तुम्हे बन्दीछोड़ गरीब दास
साहिब जी के तेज-पुंज के स्वरूप के दर्शन करवा देते है, आओ हमारे साथ” |
सारी संगत छतरी साहिब मंदिर के अंदर
श्री दरबार साहिब जी में दर्शन करने के लिए पहुँच गई | तब सतगुरु ब्रह्म सागर जी महाराज
भुरीवालो ने छतरी साहिब के आगे दण्डवत प्रणाम
किया और जब सतगुरु ब्रह्म सागर जी महाराज भुरीवालो प्रणाम करके उठे तो, बन्दीछोड़ गरीब दास साहिब जी की प्रतिमा में से इतना
प्रकाश हुआ की सारी छतरी साहिब जगमगा गई |
सारी संगत ने बन्दीछोड़ गरीब दास साहिब
जी के तेजपुंज के रूप के दर्शन किये | सतगुरु ब्रह्म सागर जी महाराज
भुरीवाले प्रतिमा के पीछे खड़े होकर बन्दीछोड़ गरीब दास
साहिब जी की प्रतिमा को चंवर करने लगे | तब बन्दीछोड़ गरीब दास साहिब के स्वरूप में से वाणी उच्चारण होने की आवाज सुनाई
दी | और इस प्रकार अपनी आँखों से देखकर शंकावादी लोगों की शंका मिट गई | सभी को निश्चय हो गया की यँहा छतरी साहिब मन्दिर छुड़ानी धाम में साक्षात्
बन्दीछोड़ गरीब दास साहिब जी हाजर नाजर बैठे है | बन्दीछोड़ गरीब दास साहिब जी के श्री मुख से निकले हुए वाक्य है:
हाजर नाजर है धनी, साहिब दिलदाना रे |
पलकों चौरा कीजिये, ता पर कुरबाना रे |
सतगुरु ब्रह्म सागर जी महाराज भुरीवालो के लिए बन्दीछोड़ गरीब दास साहिब जी प्रकट ने हाजर नाजर थे | सतगुरु ब्रह्म सागर जी महाराज
भुरीवाले जिसे चाहते उसी को दर्शन करवा देते
थे और इसका कारण यही था कि सतगुरु ब्रह्म सागर जी
महाराज भुरीवालो वही पवित्र आत्मा थे | बन्दीछोड़ गरीब दास साहिब जी के ही अवतार थे | जब चाहते थे तभी अपने
स्वरूप को प्रकट कर लेते थे |
सतगुरु ब्रह्म सागर जी महाराज भुरीवालो का संगत को यही
उपदेश था कि “जो महान आत्मा बन्दीछोड़ गरीब दास साहिब
जी की बिन्दी धारा छुड़ानी धाम में अवतरित होकर बन्दीछोड़ गरीब दास साहिब जी की
गद्दी पर आसीन होती है, वह साक्षात् बन्दीछोड़ गरीब दास साहिब जी का अपना ही स्वरूप
होता है | इस गद्दी पर कोई साधारण व्यक्ति विराजमान नही हो सकता | बन्दीछोड़ गरीब दास साहिब
जी के सिंहासन पर बन्दीछोड़ गरीब दास साहिब जी का ही स्वरूप विराजमान होता है, इसमे
किसी को शंका नही करनी चहिये” | इस बात को सतगुरु ब्रह्म सागर जी महाराज भुरीवालो ने सार्थक करके दिखाया है | उस समय में मोजूदा गद्दीनसीन श्रीमहन्त
रामकिशन दास जी को स्वामी जी साक्षात् बन्दीछोड़ गरीब दास साहिब जी का स्वरूप देखते
हुए उन्हें दण्डवत प्रणाम
करते थे और जंहा भी जाते श्रीमहन्त रामकिशन दास जी को सर्वोच्च आसन पर आसीन कर ब्रह्म सागर जी महाराज भुरीवालो उनके चरणों में बैठते थे | श्रीमहन्त रामकिशन दास
जी के बाद श्रीमहन्त गंगासागर जी और फिर वर्तमान में श्रीमहन्त दयासागर जी
विराजमान है |
गरीब, मासा घटे न तिल बधे, बिधना लिखे जो लेख |
साचा सतगुरु मेटि
कर, ऊपर मारे मेख ||
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