गरीब ऐसा अविगत राम है, अगम
अगोचर नूर |
सुनं सनेही आदि है, सकल लोक भरपूर ||
जब गरीब दास साहिब जी की विवाह की उम्र हुई तब पिता जी श्री बलराम जी व माता
रानी जी ने एक सुयोग्य कन्या मोहिनी देवी सुपुत्री श्री नादर सिंह दहिया गाँव
बरोना के साथ विवाह सम्पन करा दिया था | बरोना गाँव
श्री छुड़ानी धाम से ३० मील कि दुरी पर रोहतक-सोनीपत वाली सड़क पर है| एक बार की बात हैं महाराज जी बरोणा ग्राम गए हुए थे | बहुत से लोग आपके पास बैठे हुए थे| और तरह तरह की चर्चा कर रहे थे | तभी उस ग्राम का एक विद्वान् पंडित वँहा आया और वँहा आकर उन लोगो से पूछा कि “जो
ये लड़का (गरीब दास साहिब जी) जो पलंग पर बैठा हुआ हैं कोन हैं?”
बन्दीछोड़ गरीब दास साहिब जी ने एक
लीला रची | जैसे ही पंडित महाराज जी के पलंग के सिरहाने की तरफ बढ़ा तो
महाराज जी ने कहा कि “आइये पंडित जी बैठिये” | जैसे ही पंडित सिरहाने की ओर बैठा उसको पलंग की पांत की रसियाँ चुभने लगी | पंडित ने समझा की इधर सिरहाना नहीं हैं, वह उठ कर दूसरी ओर
बैठ गया | जैसे ही वह दूसरी ओर बैठा फिर से उसको पलंग की पांत की
रसियाँ चुभने लगी | पंडित चकित
रह गया | पंडित एकदम से फिर उठ गया | तब महाराज जी ने कहा कि “पंडित जी सिरहाना तो इस तरफ हैं, आप वँहा बैठ गए” | अबकी बार पंडित ने कपडा
हटा कर देखा और निश्चय किया कि यही सिरहाना हैं और वह फिर बैठा गया पर फिर वही हुआ
बैठते ही उसको पलंग की पांत की रसियाँ चुभने लगी | पंडित जी कभी इधर तो कभी उधर बैठाता पर हर तरफ उसको पलंग की पांत की रसियाँ
चुभने लगती |यह आलोकिक लीला देखकर पंडित को बहुत आश्चर्य हुआ | अब पंडित को कुछ समझ नही आ रहा था कि “यह उसके साथ क्या हो
रहा है” | तब पंडित को निश्चय हो
गया की यह कोई अन्तर्यामी शक्तिशाली पुरुष हैं | तब पंडित महाराज जी से अपने अपराध की माफ़ी मांगने लगा और कहने लगा कि “आप
दयालु हैं, मेरे जैसे अभिमानियो का अभिमान दूर करने के लिए और उन्हें कल्याण का
मार्ग दिखने के लिए आप ने इस म्रत्यु मंडल में अवतार लिया हैं | आपको पहचानना हर किसी के बश की बात नहीं हैं” |
तब महाराज जी उसको समझाया कि “पंडित
जी आप विद्वान् हैं लोगो को धर्म शिक्षा देने के लिए हो आप | यदि आप लोगो में ही इतना अभिमान
इर्षा आदि हो तो इसका अन्य जनता पर कैसा प्रभाव पड़ेगा और उनके दोस कैसे दूर होंगे?
जो लोग समाज में मान्य होते हैं जिनको समाज गुरु मानता हैं शिक्षा ग्रहण करता हैं उनसे
ही समाज को सन्मार्ग का ज्ञान होता हैं और यदि गुरु ही मर्यादा को छोड़ दे तो अन्य
लोग कैसे मर्यादा का पालन करेंगे | इसलिए पंडित जी आप अभिमान को छोड़ दीजिये | अभिमान रहित व्यक्ति सदा ही सुखी रहता हैं और आपको गुण-ग्राही बनना चहिये”| महाराज जी अपनी वाणी में फरमाते है कि:
दास भाव जो ह्रदय होई, ता वज्र परे नहीं कोई |
दास भाव है अगम अगाहा, दास भाव सा और न लाहा ||
साखी: गरीब दास भाव
बिन बहु गये, रावण से रणधीर |
लंक बिलंका
लुट गई, जम के परे जंजीर ||
अर्थात जो व्यक्ति दास भाव से युक्त
होता हैं उस पर कभी कोई विपति नहीं आती | जो व्यक्ति नम्र रहता हैं उसको हमेशा ही नये गुणों की प्राप्ति होती है|
महाराज जी के वचन सुनकर पंडित बहुत
प्रभावित हुआ और हमेशा के लिए महाराज जी का अनुयायी बन गया | तब महाराज जी ने कहा कि “जो लीला मैंने अभी दिखाई तुम्हे
इसके बारे में किसी भी ग्रामवासी को मत बताना | यदि बताया तो हम इस ग्राम में आना छोड़ देंगे | परन्तु पंडित ने फिर भी यह बात लोगो को बता दी |अपने
वचनानुसार महाराज जी ने उस ग्राम में जाना ही
छोड़ दिया |
On jai guru garib dass devaya namah
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