Saturday, August 9, 2014

भाई मलूका देख “तेरी ऊँगली में तारा”

ऊंचे कुल में नाश होत है़, नीचा ही कुल दीजै ।
 तपिया कूं तो दशर्न नाहीं, लोदी नालि पतीजै ।।

बात उस समय की हैं जब जगतगुरु बाबा गरीब दास जी महाराज की आयु सिर्फ ५ वर्ष की थी| आचार्य गरीब दास जी अपने मित्रो के साथ खेल रहे थे| जब खेलते-खेलते काफी देर हो गई तब महाराज जी के साथी बालक थक गये और फिर थक-हार कर बैठ गए पर महाराज जी का मन अभी भी और खेलने का था तो महाराज जी कंकरियों द्वारा खेलने लगे| महाराज जी ने कंकरियों से खेलते-खेलते जब “घींची” की चोट चलाई तब वह कंकर तरखानों के मलूका नामक लड़के की छोटी अंगुली में बहुत जोर से जा लगी|




कंकर लगने से मलूकचन्द (मलूका) की ऊँगली में तीव्र पीड़ा होने लगी| मलूका जोर-जोर से चिल्लाने लगा क्यूंकि उसकी ऊँगली में घाव हो गया व खून कि धारा बहने लगी थी| तब मलूका कहने लगा कि “गरीबा तूने मेरी ऊँगली पर चोट मरी हैं| अब मै तुम्हारे घर जाकर तुम्हारी शिकायत करूंगा”|  और अन्य बालक भी मलूका के साथ मिलकर कहने लगे कि हम सब तेरे साथ चलते हैं गरीबा कि शिकायत करेंगे”| तब महाराज जी ने मन में विचार किया कि “यह मुझसे क्या हो गया, अब मलूका रोता हुआ अपने माता-पिता के पास जायेगा और मेरा नाम बतायेगा| फिर इसके माता-पिता मेरे माता-पिता से झगड़ा करेंगे और फिर माता मुझे मारेंगी” |

ऐसा सोचकर परम शक्तिशाली ईश्वरतुल्य, बन्दीछोड़ गरीबदास जी महाराज ने एक अदभुत लीला रची| गरीबदास जी महाराज ने मलूका से कहा कि “भाई मलूका तु रो क्यों रहा हैं देख तेरी अँगुली में कितना प्रकाशमय तारा चमक रहा हैं”| यह सुनकर मलूका ने गरीबदास जी महाराज से रोते हुए कहा कि “गरीबा मुझे चोट लगी हैं और तु अब भी मजाक कर रहा हैं”| फिर आकाश की तरफ देखते हुए मलूका ने कहा कि “तारे तो आकाश में होते हैं”| तब गरीबदास जी महाराज ने मलूका को उसकी ऊँगली पकड़ कर दिखाई और कहा कि “देख मलूका यह रहा तेरी ऊँगली में तारा हैं| ऐसी-ऐसी चीजें सभी को दिखाने के लिए नहीं होती हैं|


ऐसी वस्तु को गुप्त रखा जाता हैं इसलिये अब तुम इसे अपनी मुट्ठी में बंद कर लो”| अपनी ऊँगली में घाव व खून की जगह तारा देखते ही मलूका प्रसन्न हो गया और फिर उसने मुट्ठी बंद कर ली और खुशी से नाचने लगा| वह सारी बातें भूल गया जो की उसने गरीबा के विरूद्ध ठान रखी थी| और फिर मलूका खुशी मनाता हुआ अपने घर की ओर चला गया| घर जाकर मलूका जोर-जोर से चिल्ला कर अपने माता-पिता से कहने लगा कि “देखो मेरी ऊँगली में तारा हैं”| माता-पिता को मलूका की इस बात पर विश्वास न हुआ और कहने लगे कि “तारें तो आकाश में होते हैं”| तब मलूका ने कहा कि “आप देखो तो सही गरीबा ने घींची मार कर तारा प्रकट किया हैं”| तारा देखने के लिए माता-पिता ने जैसे ही मुट्ठी खोली| मुट्ठी खोलते ही उनको अकस्मात दिव्य प्रकाश दिखाई दिया और फिर उसी पल वह लुप्त हो गया| यह विचित्र घटना देखकर माता-पिता के साथ-साथ मलूका भी दंग रह गया| इस घटना से दुखी हो कर मलूका शोर करने लग गया और उसने फिर से रोना शरू कर दिया| कुछ ही समय में गरीब दास जी महाराज की यह विचित्र लीला पुरे छुड़ानी धाम में आग की तरह फैल गई| हर ग्रामवासी के मुख पर गरीब दास जी महाराज जी इस विचित्र लीला की ही बातें चल रही थी| और लोग परस्पर बातें कर रहे थे कि “यह रानी का बालक तो अदभुत हैं प्रतिदिन नई-नई लीलाये रचता रहता हैं जो न कभी देखी न कभी सुनी”|   

इस लीला को परम पूज्य स्वामी लालदास जी के शिष्य स्वामी हरदेवानन्द जी प्रवाना ने बड़े ही सुंदर भजन के माध्यम से इस लीला को दर्शाया हैं:

श्री सतगुरु लाल दास जी महाराज भुरीवाले
स्वामी लाल दास जी का जन्म विक्रमी सम्वत १९४६ के पोष सुदी दूज को सन १८८९ की  दिसम्बर माह की २५ तारीख को पिता श्री सरदार काहन सिंह के घर माता श्रीमती प्रताप कौर की सुभागी कोख से बल घराणे में जिला लुधियाना के एतहासिक नगर रकबा में हुआ | इस नगर में महाराज ब्रह्म् सागर जी भूरी वाले प्रायः आया करते थे | जिनके सद उपदेशों से प्रभावित होकर स्वामी लालदास भुरिवालो को वैराग उत्पन हुआ | वैराग का यह रंग दिन प्रति दिन गुढ़ा होता गया | जिला लुधियाना के गाँव ब्रह्मी में सतगुरु ब्रह्म सागर जी भुरीवालो की कृपा से आप मुंशी सिंह से स्वामी लाल दास बने |  महाराज ब्रह्म सागर भूरी वालों के ब्रह्मलीन होने के पश्चात लुधियाना की कूटिया में धर्म का ऐसा प्रचार प्रसार किया की हजारों लोग नशे आदि त्याग कर प्रभु मार्ग पर चल पड़े |



महापुरुष १४ अगस्त १९७५ को सावन  माह की सुदी दसवी को अपने पंच भौतिक शरीर का त्याग कर  ब्रह्मलीन हो गए | १६ अगस्त १९७५ को आप जी के पार्थिव शरीर को पवित्र गंगा में जल प्रवाह किया गया | आप जी की इच्छा तथा सद्बचनो के अनुसार श्री ब्रह्मानंद जी भूरीवालों ने संगतो का मार्ग दर्शन किया | आपके जन्म उत्सव के उपलक्ष में पोह सुदी दूज को रामसर मोक्ष धाम टप्परियाँ खुर्द (नवाशहर) जेष्ट सुदी दूज को उनकी जन्म भूमि धाम रकबा साहिब (लुधियाना) तथा बरसी समागम हरिद्वार (उत्तराखंड) में सावन सुदी दसवी को श्रधा के साथ मनाए जाते है |    
  
बाल लीला वाली वार्ता सुनावां संगते, खेल गेंद वाली खोल समझावाँ संगते |

नाल साथियाँ दे खेलदे गरीबदास जी, गेंद मारदे चलाके डिगी आस-पास जी |

चोट लग गई मलूक चन्द बालक दे, खून उंगली तो वगे रंग मालक दे |

लगी चोट तो मलूका रोंदा जारों जार जी, कैंहदां हथ मेरे पीड़ा हुँदी बेशुमार जी |

घर दसनां मैं जाके तेरे, सारा हाल वे, जिहड़ी किती तै बुराई, अज मेरे नाल वे |


कैंहदे साथी इस गल्ल विच हेर फेर ना, असी चलदें हां तेरे नाल लाई देर ना |

ऐनी सुन बन्दीछोड़ दिल विच धार दे, कला दसदे निराली रंग करतार दे |

तारा टूट अर्शा तों धरती ते आ गया, हुकम गरीबदास वाला आन के बजा गया |

अगों करदे मलूक चन्द नूं इशारा जी, देखो भैया  तेरी ऊँगली पै जगे तारा जी |

सारे पिंड “च” मलूका खुशियाँ “च” गावदां, जगे ऊँगली पै तारा,सब नू दिखावंदा |

मेरे बन्दीछोड़ खेल करदे नियारे जी, कैंहदा हरीपुरवाला जय बुलाओ सारे जी |


               

















 || सतपुरुष कबीर दास जी महाराज की जय ||
|| आचार्य श्री.श्री.१००८ गरीब दास जी महाराज की जय ||
|| श्री सतगुरु ब्रह्म सागर जी भूरी वालो की जय ||
                                                || श्री छुड़ानी धाम धाम की जय ||




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