Saturday, September 6, 2014

आचार्य गरीब दास जी महाराज द्वारा झज्जर के नवाब को उपदेश

                               
                                        जीव को हमेशा परमात्मा के नाम का सुमरीन करते रहना चहिये | मनुष्य तो श्रेष्ठतम जीव हैं | पशु भी प्रभु के नाम का सुमरीन करके इस जन्म-मरण के बंधन से छुटकारा पा जाते हैं | इस प्रसंग में गरीब दास जी महाराज गज और ग्राह (हाथी और मगरमच्छ) का उदहारण देते हुए “राग बिलावल” में फरमाते हैं कि :

अर्ध नाम का पटतरा, सुनियों रे भाई |
गज ग्राह पशुआ तिरै, सुमरो तांई ||


                                   बात उस समय कि है जब झज्जर के नवाब के राज्य में हिन्दुओं और मुश्लिमो में विवाद हो गया था | मुसलमान कहते कि हमारे खुदा का नाम बड़ा हैं और हिन्दू कहते कि हमारे राम का नाम बड़ा हैं |  उस समय तक गरीब दास जी  महाराज की ख्याति काफी दूर-दूर तक फेल चुकी थी | तब दोनों पक्षों के लोग मिलकर गरीब दास जी महाराज के पास आये की फैसला किया जाए की रामनाम बड़ा या खुदानाम बड़ा क्युकि उनको महाराज जी की निपक्ष्ता पर पूर्ण विश्वास था | तब गरीब दास जी महाराज ने उन लोगो को अनेकों प्रकार से समझाया की दोनों में कोई अंतर नहीं हैं और उपदेश देकर दोनों पक्षों के बिच के मतभेद दूर किये | गरीब दास जी महाराज अपनी वाणी फरमाते हैं कि:

गरीब, शब्द सिन्धु में लोक हैं , ऐसा गहर गम्भीर |
राम कहो साहिब कहो ,सोहं सत्य कबीर ||
          
                    इस संसारका रचनहारा तो एक ही हैं उसे अलग अलग नाम तो आप सब ने दिए हैं इस पर वो लोग विवाद करते है जो वास्तविक तत्व को नहीं समझते | इस संसार में कुछ भी वास्तविक में नही हैं सिवाए एक के वह गुरु शब्द हैं | जिसका हमे निरंतर जाप करते रहना चहिये | गरीब दास जी महाराज का उपदेश पाकर बहुत से मुश्लिम समुदाय के लोग महाराज जी के अनुयायी बन गए और साथ ही साथ परस्पर हो रहा झगड़ा समाप्त हो गया| उसी समय झज्जर के नवाब को एक मुश्लिम सैनिक ने महाराज जी के बारे में बताया कि ”छुड़ानी धाम में एक हिन्दू पीर रहता हैं वह बहुत ज्ञानी हैं जो उनकी शरण में जाता हैं उसका जीवन सफल हो जाता हैं| आपको भी उनके पास अवश्य जाना चाहिये” |

तब नवाब ने कहा कि “लोग बहुत सहज विश्वासी होते हैं बहुत जल्दी किसी पर भी विश्वास कर  लेते हैं पर मै ऐसा नही करूंगा| पहले हम उनकी (गरीब दास जी महाराज) परीक्षा लेंगे उसी के बाद निश्चय करेंगे की हमे उनके पास जाना चहिये या नहीं ” | दुसरे दिन नवाब ने २० कनस्तरो मँगवाये जिसमे नवाब ने नीचे तो गोबर भरवा दिया और ऊपर उन २० कनस्तरो में एक-एक दो-दो सेर घी डलवाकर कनस्तर बंद करवा दिए| फिर अपने सैनिको से कहा कि “इन कनस्तरो को छुड़ानी धाम में ले जाओ और गरीब दास जी महाराज से कहना कि “नवाब साहब ने भंडारे के लिए घी भिजवाया हैं” |
सैनिक कनस्तर लेकर छुड़ानी धाम में गरीब दास जी महाराज के सामने पहुंचे| आचार्य गरीब दास जी महाराज तो इस संसार के रचनहार थे, अन्तर्यामी थे उनसे क्या छिपा था| उनको पता था की नवाब ने क्या खेल रचा हैं| इसलिये गरीब दास जी महाराज ने सैनिको से कहा कि “आप इन घी के कनस्तरो को वापिस ले जाओ और नवाब साहब से कहना कि इनमे जो ऊपर हैं वही नीचे  हैं“| सैनिक कनस्तरो को वापिस ले गए और उन्होंने नवाब के सामने सारी बाते बताई| नवाब ने कनस्तरो को खुलवाया तो आचार्य गरीब दास जी महाराज की असीम अनुकम्पा से गोबर भी घी बन चुका था| तब नवाब ने सैनिको से पुछा कि “क्या गरीब दास जी महाराज ने ये कनस्तर खोल कर देखे थे“| तो सैनिकों ने उतर दिया कि “नहीं उन्होंने (गरीब दास जी महाराज) तो इन्हें दूर से देखते ही लोटा दिया था” | गरीब दास जी महाराज की अदभुत लीला देखकर नवाब को बहुत आश्चर्य हुआ | तब नवाब को यकिन हुआ की वास्तव में गरीब दास जी महाराज कोई खुदा का भेजा हुआ दूत हैं और नवाब ने निश्चय किया कि “मुझे गरीब दास जी महाराज जी शरण में जाना चहिये मेरा उदहार होगा“ |तब नवाब गरीब दास जी महाराज की धर्म सभा में गया | गरीब दास जी महाराज ने नवाब को अहिंसा धर्म का उपदेश दिया व गोहत्या रोकने का सुझाव दिया| अपनी वाणी में गरीब दास जी महाराज फरमाते हैं कि 

मुस्लमान कूं गाय भखी, हिन्दू खाया सूर |
गरीब दास दांऊ दीन से, राम-रहीमा दूर ||

        गरीब दास जी महाराज कहते हैं कि “जो मुसलमान गाय का माश खाते हैं और जो हिन्दू सूर का माश खाते हैं उनसे वह परमपिता परमात्मा राम-रहीम कभी प्रशन नहीं होते” |

सूर गऊ की एकै माटी , आत्म रूह इलाही |
 दास गरीब एक औह साहिब , जिन यह उम्मत उपाई ||

      और फिर आगे महाराज जी ने नवाब साहब को उपदेश देते हुए मुहंमद ह्ज्रद के बारे में बताया जो कि “श्री ग्रन्थ साहिब जी” में “अथ मुहंमद बोध” के नाम से संषिप्त में हैं|
बिलैवांन विस्तार बिलाका, नोज उदर घर संजम ताका | जाकै भोग मुहंमद आया, नोज उदर घर मुहंमद जाया ||
ऐसा ज्ञान मुहंमद पीरं, जिन मारी गऊ शब्द के तीरं| शब्दै फेर जिवाई, जिन गोसत नहीं भाख्या, हंसा राख्या, ऐसा पीर मुहंमद भाई ||
पीर मुहंमद नही बहिश्त सिधाना, पीछे भूल्या है तुरकाना| गोसत खाहिं नमाज गुजारै, सो कहो क्यूँ बहिश्त सिधारै ||
एक ही गूद,एक ही गोस्त, सूर गऊ एकै जाती| एकै जीव साहिब कूं भेज्या, दौहूँ में एकै राती ||
एकै चाम एक ही चोला, गूद हाड की काया| भूल्या काजी कर्द चलावै, कदि रब कूं फुरमाया || 
काजी कोन कतेब तुम्हारी, ना तूं काजी ना तूं मुल्लां, झूठा है व्यापारी |
काजी सो जो कजा नवेडै, हक्क हलाल पिछानै| न्याव करै दरहाल दुनी का, नीर शीर कूं छानै ||
मुल्लां सो जो मूल मिलावै, दिल मरहम दिल बीच दिखावै, सो मुल्लां मसताखी| सो तो मुल्लां बहिश्त सिधारै , और मुल्लां सब खाखी ||
                            तब गरीब दास जी महाराज ने अनेक प्रकार से नवाब को उपदेश दिया और इसके फल स्वरूप नवाब ने गरीब दास जी महाराज की धर्म सभा में प्रतिज्ञा ली कि “वह कभी भी अपने झज्जर जिले में जीवहत्या नहीं होने देगा और हमेशा सत्य के मार्ग पर चलेगा| उसी पल से नवाब आचार्य गरीब दास जी महाराज का अनुयायी बन गया|
   

 || सतपुरुष कबीर दास जी महाराज की जय ||
|| आचार्य श्री.श्री.१००८ गरीब दास जी महाराज की जय ||
|| श्री सतगुरु ब्रह्म सागर जी भूरी वालो की जय ||
                                               || श्री छुड़ानी धाम धाम की जय ||








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