सतगुरु बन्दीछोड़ साहिब गरीब दास जी का अवतरण - भाग २
गत अंक से आगे ....
महापुरुषों के कथनानुसार कुछ
समय पश्चात माता रानी गर्भवती हो गई | जब गर्भ छे माह का था तो एक दिन माता रानी
पानी भरने के लिए कुँए की तरफ जा रही थीं तो मार्ग में दो संत मिल गए | माता रानी
को देख कर संतों ने उन्हें प्रणाम किया और परिक्रमा करने लगे | यह देख माता कुछ
परेशान हो गई और बोलीं, आप संत महापुरुष हैं
इस तरह का व्यवहार करके हमें पाप का भागी क्यूँ बना रहे हैं | तब संतों ने कहा माता
जी आप पाप के नहीं आप तो पुण्य के भागी हो | मैया आपकी देह में हमारे सतगुरु जी का
तेज प्रत्यक्ष हो रहा है | हमने तो उन्हींके को प्रणाम किया है और उन्हीं की
परिक्रमा की है | माता आप धन्य हैं | यह छुड़ानी गाँव धन्य है | यहां के लोग भी
धन्य हैं जहां पर हमारे सतगुरु जी का अवतार होगा |
संतों के मुख से इस प्रकार
के वचन सुनकर हर्ष के कारण माता रानी का कंठ भर आया, अंग प्रफुल्लित हो उठे | हर्ष
और आनंद से भरकर माता ने दोनों संतों के मुख की और देखा और गद गद कंठ से कहने लगी
की आपने मेरे भाग्य को बहुत ऊँचा कर दिया | संतों के वचन हमेशा सत्य ही सिद्ध होते
हैं | मुझे विश्वास है की आप के यह वचन अवश्य ही सिद्ध होंगें | आज मेरा हृदय शीतल
हो गया | संतों को प्रणाम करके माता रानी ने उनसे आग्रह किया की कृपया आप हमारे घर
पधारकर अन्न ग्रहण करें | इसपर संतों ने कहा माता हम तो शब्द अहारी है, अन्न ग्रहण
नहीं करते हम अवश्य फिर कभी आएंगें |
माता ने पूछा की मुझे कैसे
पता चलेगा की मेरे घर पारब्रह्म परमेश्वर ही प्रकट हुए हैं | संतों ने कहा माता जब सतगुरु प्रकट होंगें तो
अनायास ही अनेक सूर्यों का प्रकाश हो जाएगा आप को प्रसव पीड़ा का अनुभव भी नहीं
होगा और आप को प्रभु बालक रूप में खेलते हुए दिखाई देंगें | इस तरह कहकर दोनों संत
अंतरध्यान हो गए | माता रानी प्रफुल्लित मन से विचार करती हुई घर पहुंच गईं |
घर पहुंचकर माता रानी ने
सभी से खुशी खुशी सारा वृतांत कह सुनाया | सभी के खुशी का ठिकाना ना रहा | अब सभी
आश्वस्त हो गये की उनके यहां परमेश्वर का ही प्राकट्य होगा | घर में अनेकों प्रकार
के मंगल कार्य होने लगे | नई नई विभूतियाँ प्राप्त होने लगीं मंगल सूचक शुभ शकुन
होने लगे |
इस प्रकार धीरे धीरे वह समय
निकट आ गया जब महाराज जी का प्रकट होने को थे | उस समय सभी राशियाँ, नवग्रह, योग
करण महूर्त सब अपनी अत्यंत सार्थकता के लिए अनुकूल हो गए | इस तरह विक्रम संवत
१७७४ वैशाख शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को ब्रह्म मुहूर्त में सूर्योदय से दो घड़ी पहले
महाराज जी ने अपने तेजोमय विग्रह को प्रकट किया | अनायास ही अनेकों सूर्यों का
प्रकाश हुआ | माता को प्रसव पीड़ा का अनुभव भी नहीं हुआ | जब माता ने देखा तो
उन्हें एक बालक खेलता हुआ दिखाई दिया | उन्हें आश्चर्य हुआ की यह कैसा बालक है जो
पैदा होते ही खेलने लगा ? विचार करने लगी की कहीं मैं कोई सपना तो नहीं देख रही ?
ऐसा सोच ही रही थीं की एका एक सतगुरु जी का बालक रूप माता की आँखों से ओझल हो गया
| यह देख कर माता बहुत घबरा गई और बोली हाय ! मेरा बच्चा कहाँ गया | माता को दुखी
और अधीर देखकर सतगुरु फिर से प्रकट हो गए और साधारण बालकों की भांति रोने लगे | बच्चे
के रोने की अवाज सूनकर घर की महिलाएं दौड़ी आईं और देखकर आश्चर्य में पड गईं | माता
रानी से कहने लगीं की अगर तुझे लग रहा था की प्रसव होने को है तो तुम ने किसी को
अवाज क्यूँ नहीं लगाई ? और यह क्या तूने प्रसव पीड़ा सहकर अकेली ही बच्चे को जन्म
भी दे दिया ? इसपर माता रानी ने उन्हें सारी घटना बताई तो सभी हैरान रह गईं | सभी
के मन में यह बात समा गई की यह कोई अलौकिक बालक है | शीघ्र ही इस अलौकिक घटना के
चर्चे पूरे गाँव में होने लगे | सभी यही कहते की बलराम सिंह के यहां किसी अलौकिक
महापुरुष का जन्म हुआ है | माता पिता ने उनके घर अलौकिक संतान होने की खुशी में
गरीब, ब्राह्मणों और संत महात्माओं को गाय, अन्न, वस्त्र और आभूषण दान में दिए | इससे इस
अलौकिक बालक की कीर्ति दूर दूर तक फैलने लगी | हर दिन संत, महापुरुष और साधारण लोग
बलराम जी को बधाई देने और उनके अलौकिक पुत्र के दर्शन हेतु पधारते | हर दिन घर में
उत्सव जैसा महौल रहने लागा |
इसी प्रकार कुछ दिन बीत
जाने पर एक दिन वही संत महापुरुष जिन्होंने माता रानी को आश्वासन दिया था कि उनके
यहां हमारे सतगुरु कबीर साहिब जी का अवतार होगा, वह छुड़ानी गाँव में सतगुरु जी के
बालक रूप के दर्शन करने के लिए पधारे | जब घर के सदस्यों को पता लगा की यह वही संत
है जिन्होंने भविष्य वाणी की थी, तो सभी ने उनका विशेष स्वागत किया | दण्डवत
प्रणाम करके आसन पर बिठाया | चरण धो कर चरणामृत लिया और आशीर्वाद प्राप्त किया | बलराम
जी ने संतों से पूछा की महाराज आप जी की क्या सेवा करें ? तब संतों ने कहा की हम
किसी सेवा के लिए नहीं आए | यदि आप हमें प्रसन्न करना चाहते हो तो हमें अपने बालक
के दर्शन करवा दो | हमारे इष्ट देव साक्षात् पारब्रह्म परमेश्वर सतगुरु कबीर साहिब
जी ने आप के घर अवतार धारण किया है | आप हमें शीघ्रातिशीघ्र हमारे सतगुरु जी के
दर्शन करवाएँ यही हमारी सेवा है | महापुरषों की बात सुनकर बलराम जी ने बालक को
लाकर महापुरषों के चरणों में डाल दिया | महापुरषों ने सहर्ष बालक को उठा कर
नमस्कार किया और अनेक प्रकार से स्तुति करने लगे |
मर्यादामवितुं
चिरात् त्रिजगत: प्राप्तप्रतिष्ठां परां,
यो शून्योऽपि गुणैर्गुणान्विततया संजायते
नैकश: |
साधूनामवनंविनाशनपरं
सद्धर्म वाह्यप्रथा रीते रस्मि कबीरदासवपुषा जातं नतस्तं विभुम् ||
विश्व में सुप्रतिष्ठित
सर्वोत्तम ऐसी जो अनादि मर्यादा है, उस मर्यादा का पालन करने के लिए जो स्वयं
निर्गुण और निराकार रहते हुए भी सगुण और साकार होकर अनेक बार आया करता है |
कुप्रथाओं को हटाकर संत महात्माओं को सत्य सनातन मार्ग दिखने के लिए कबीर नाम से
अवतरित हुए उस व्यापक परमतत्व को नमस्कार है |
इसतरह उन्होंने बालक की
अनेक प्रकार से स्तुति की | अंत में सतगुरु के नाम स्मरण और ध्यान करने का महत्त्व
बताते हुए कहा की जो प्राणी शुद्ध भाव से इनका स्मरण व ध्यान करेगा वह अंत समय इस
अनित्य देह का परित्याग करके इस बालक स्वरुप परम पुरुष में लीन होगा | इस प्रकार
उपदेश देकर और सतगुरु जी को दण्डवत प्रणाम करके दोनों महापुरुष अंतरध्यान हो गए |
यह चरित्र देखकर माता पिता और सारा परिवार आनंदविभोर हो उठा | बालक की अलौकिकता को
समझ कर माता पिता खूब अच्छी तरह से उनका लालन पालन करने लगे |
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