बेदाना फल दूर है
जिस समय आचार्य गरीब दास जी
का अवतार हुआ उस समय समाज दिशा हीन हो चूका था | सत्य का मार्ग बताने वाला ना होने
के कारण लोग चेले चपाटों के पीछे लग कर जीवन व्यर्थ कर रहे थे | ढोंगी साधु महंतों
की कोई कमी नहीं थी जो लोगों को अपने पीछे लगाने के लिए अनेकों प्रकार की युक्तियों
का प्रयोग करके भोलि भाली जनता को बुद्धू बनाते थे | ऐसे ही एक साधू थे काशीदास
दास जिनकी मण्डली में काफी चेले थे | इसने अपने आप को महापुरुष सिद्ध करने के लिए एक
स्वांग रच रखा था | यह एक बर्तन को दोनों ओर से डोरी से बांधकर अपने कानों में
लटका लेता और अपनी जीभ पर नमक मिर्च मसलकर बर्तन में अपनी लार को टपकाता | अपने
शिष्यों सेवकों से कहता की मेरे दशम द्वार से अमृत झर रहा है | अज्ञान वश उसके
शिष्य सेवक उसे अमृत समझ कर पी जाते | यह अपनी शिष्य मण्डली के साथ घूमते घूमते राजस्थान
से हरियाणा प्रांत में चले आए | हर गाँव में महाराज जी की महिमा को सुन कर उसके
अन्दर महाराज जी के दर्शन करने की उत्कंठा उत्पन्न हुई | उत्कंठा वश वह अपनी शिष्य
मण्डली के साथ छुड़ानी पहुंच गया और तलाब पर वट वृक्ष के नीचे डेरा जमा दिया |
जलपान करने के पश्चात अपने कुछ शिष्यों को लेकर महाराज जी के दर्शन हेतु आश्रम में
पहुंचे जहां पर पहले ही काफी संगत बैठी थी | बंदिछोड तो अंतर्यामी हैं उन्होंने
अपनी दिव्य दृष्टि के द्वारा उसके पाखंड को जान लिया |
महाराज जी ने बड़े
सत्कारपूर्वक उन्हें बैठने के लिए आसन दिया और जलपान के लिए पूछा | काशीदास ने कहा
की कोई रूचि नहीं, हम जल पान करके आए हैं | फिर महाराज जी ने उपदेश देते हुए कहा
की साधू जी सिर्फ ऊपर से अपना भेष हंस के समान बना लेने से कुछ लाभ नहीं आप के अन्दर
की वृति तो बगुले जैसी है अर्थात आप का यह भेष लोगों को ठगने के लिए है | इस
प्रकार के ढोंगी पन से आप को कुछ भी प्राप्त नहीं होगा अंत में इस ज़माने से खाली
हाथ ही जाओगे | काशीदास अगर तुम अमीरस का स्वाद चखना ही चाहते हो तो जितेन्द्रिय
होकर योगसाधना किया करो | क्यूंकि बेदना (दाने से रहित) अमृत फल बहुत दूर है | उसे
पाने के लिए जीभ पर नमक मिरच लगाने से कोई लाभ नहीं | अगर तुम कुछ समझ रखते हो तो
हम तुम्हें सार बात बताते हैं की तुम शब्द ब्रह्म का आश्रय लो क्यूंकि ऐसा शुभ
अवसर तुम्हे दोबारा नहीं मिलेगा |
महाराज जी द्वारा काशीदास
को दिया गया यह उपदेश आप जी की वाणी “ भ्रम विधूसन का अंग “ में दर्ज है जिसकी कुछ
साखियाँ नीचे दि हैं |
गरीब, ऊपर हंस हिरम्बरी, भीतर बग मंझार |
इन बातों क्या पाईये, चल्या जमाना हार || ३१ ||
गरीब, काशीदास कसो इस तन कूँ, ज्यूं सरवै अमी शराब |
बेदाना फल दूर है, नून मिरच नहीं लाभ || ३२ ||
गरीब, जो जाने तो जान ले, बहुरि न ऐसा दाव |
आगे पीछे की कहूँ, शब्द महल में आव || ३३ ||
इस प्रकार उसके पाखंड का
भांडा सब के सामने फूट गया | सभी को पता चल गया की साधू जी अमृत रस किस प्रकार
टपकाते थे | इस पर काशीदास लज्जित होकर सतगुरु जी के चरणों में गिर कर अपने
कुकर्मों की क्षमा याचना करने लगा | उसने महाराज जी के समक्ष यह प्रण लिया कि आगे
से ऐसा पाखंड नहीं करूँगा |
महाराज जी से आज्ञा लेकर अपनी
शिष्य मण्डली को वहीँ पर छोड़कर आप साधना करने की इच्छा से कहीं चले गए |
इस प्रकार महाराज जी ने एक
पाखंडी साधू के पाखंड का परदा फाश करके ना केवल उस साधू का उद्धार किया बल्कि भोले
भाले शिष्य और सेवकों को भी उस के जाल से छुड़ा लिया |