जीव को हमेशा परमात्मा के नाम का सुमरीन करते रहना चहिये | मनुष्य तो श्रेष्ठतम जीव हैं | पशु भी प्रभु के नाम का सुमरीन करके इस जन्म-मरण के बंधन से छुटकारा पा जाते हैं | इस प्रसंग में गरीब दास जी महाराज गज और ग्राह (हाथी और मगरमच्छ) का उदहारण देते हुए “राग बिलावल” में फरमाते हैं कि :
अर्ध नाम का पटतरा,
सुनियों रे भाई |
गज ग्राह पशुआ तिरै, सुमरो
तांई ||