तुम सतगुरु कैसे कहलावौ
एक समय धर्मदास जी की शाखा का कबीर पंथी साधु हुलासीदास आचार्य श्री गरीबदास
जी के दर्शन करने छुडानी आया | महाराज जी को प्रेमपूर्वक दण्डवत प्रणाम किया और
नम्रतापूर्वक बन्दीछोड से कहा की अगर हुकम हो तो हम कुछ कहना चाहते हैं |
महाराज जी ने कहा निर्भय
होकर कहिये | तो हुलासिदास जी कहने लगे की महाराज जी मैंने आपका शब्द सुना था जिसको सुनकर मुझे
आपके दर्शन करने की इच्छा हुई यहाँ आकर आपके दर्शन करने पर मेरे मन में एक संशय
उत्पन्न हो गया है कृपया आप उस का निराकरण करिए |
महाराज यह बताइये की आप खुद को सतगुरु कैसे कहलवाते हो ? आप देहधारी हैं आपके
पत्नी पुत्र और परिवार है, आप सभी तरह के सांसारिक व्यवहार करते हैं | सतगुरु तो
निराकार ब्रह्म स्वरुप हैं, सर्वत्र समान रूप से व्यापत है | सतगुरु तीन काल भूत,
वर्तमान और भविष्य से परे है, वह तीन गति से न्यारा है | वह तो परम देश शब्द अतीत
सुन का वासी है और चार दाग से न्यारा रहता है | जिसका जन्म मृत्यु है वह तो माया
के अधीन होता है सतगुरु मायातीत है | वह तो मोक्ष बंधन से परे है | मान बड़ाई का
उसे पता ही नहीं | ना वह अवतार धारण करता है | फिर सतगुरु को ऐसी कौन सि इच्छा हुई
जो वह जगत में आ गये |
यह सुन कर महाराज जी ने कहा की अवतारों ने कभी नहीं कहा की हमें औतार कहो यह
तो जगत के लोग उन्हें अवतार कहते हैं क्योंकि वह असुरों का नाश करके भक्तों का
उद्धार करते हैं , सतगुरुओं ने कभी यह नहीं कहा की हमें सतगुरु कहो यह तो जगत के
लोग प्रेम से उन्हें ऐसा कहते हैं क्योंकी उन्होंने नाम की नौका बना कर कितनो को
पार उतार दिया | इसी तरह साधु नीर खीर का भेद बताते हैं इसलिए उन्हें साधु कहते
हैं |
यह तीनों ज्योति स्वरुप हैं | जन्म मरण तो पंच भौतिक शरीर का होता है और
ज्योति ज्योत में समा जाति है | इनका आना जाना नहीं होता | सागर में उठने वाली लहर
उसीमे समा जाति है उसमे जन्म या मृत्यु का कहां प्रश्न है | पानी में उठे बुलबुले
को देखकर उसके अलग अस्तित्व का आभास होता है परन्तु पानी के बिना बुलबुले का कोई
अस्तित्व नहीं है | तत्वत तो वह पानी ही है बुलबुला तो उसका नाम मात्र है वह पहले
भी पानी था, अब भी पानी है और फिर पानी ही रहेगा | ऐसे ही सतगुरु के स्वरुप को देख
कर उनका ब्रह्म से पृथकत्व का जिव को भ्रम होता है परन्तु वह ब्रह्म ही हैं |
परमपिता परमेश्वर (साहिब) ही सतगुरु बन कर हंसो का उद्धार करने हेतु आटे हैं
शब्द रुपी बाण मार कर पार उतार देते हैं |
सतगुर अजर अमर अविनाशी है | सात धातु के इस स्थूल शरीर में नौ तत्व का सूक्ष्म
शरीर रहता है लेकिन सतगुरु इन दोनों से अलग है | जैसे जल से भरे घड़े में सूर्य का
प्रतिबिम्ब दिखाई देता है तो ऐसा आभास होता है की मानो सूर्य उस घड़े में आगया हो
लेकिन वह तो सूर्य का प्रतिबिम्ब मात्र है ऐसे ही देह धारी सतगुर उस का प्रतिबिम्ब
मात्र ही है | जैसे घड़े के टूट जाने पर उस के अंदर का प्रतिबिम्ब भी नष्ट हो जाता
है लेकिन सूर्य वैसा ही रहता है इसी तरह इस देह के नष्ट हो जाने पर भी सतगुर नष्ट
नहीं होता क्यूँ की वह कभी इस देह में आया ही नहीं था |
सतगुरु निराकार हैं लेकिन हंसों के उद्धार के लिए सतगुरु देह धार कर आते हैं
क्योंकि साकार को साकार ही चिता सकता है | सतगुरु आकार लेकर निराकार का भेद बताते
हैं |
यह सुन कर हुलासिदास संतुष्ट और प्रसन्न होकर कहने लगे की महाराज जी आप ने मुझ
पर बड़ी कृपा की है आप साक्षात कबीर जी का ही अवतार हैं | अनेक प्रकार से स्तुति और
प्रार्थना करके वह वहां से चले गये |