शिल संतोष विवेक दे, क्षमा दया एकतार ।
भाव भक्ति बैराग दे, नाम निरालम्ब सार ।।
हे प्रभू! आप मुझे अच्छा नैतीक आचरण, संतोष वृत्ति , विवेक बुद्धि दो, सब को क्षमा करने और सब प्राणियों पर दया करने का सामर्थ्य दो, तथा सबके प्रति सम दृष्टि दिजिए । हे प्रभू मुझे प्रेमा भक्ति दो, मुझे वैराग दो जिससे मेरी वृत्ति संसार से हट जाए ।