Sunday, June 8, 2014

रामराय जी का आचार्य गरीब दास जी महाराज की शरण में आना

तेरी क्या बुनियाद है, जीव जन्म धर लेत ।
गरीबदास हरी नाम बिन, खाली परसी खेत ।।
एक बार एक महापुरुष जो की गरीब दास जी महाराज जी के शिष्य थे घूमते-२ बासियर ग्राम में आ पहुंचे यह ग्राम पंजाब में सुनाम शहर के पास हैवहाँ जाकर वह साधु एक तालाब के पास बैठ गएसंध्या का समय था, रात गुजरी सुबह हुईउस महापुरुष ने स्नान आदि किया और बह्रम महूर्त में बह्रम वेदी का पाठ करने लगाऔर बाद में कुछ शब्द “राग बिलावल” व “राग आसावरी” से भी गायेइसी समय उस ग्राम का प्रधान तलाब पर स्नान करने आया हुआ थामहाराज की वाणी सुनकर प्रधान का मन भी उस महापुरुष की तरफ खींचा चला गया प्रधान ने बैठ कर पाठ सुना और  जब महापुरुष ने पाठ पूरा किया तो प्रधान ने पूछा कि “स्वामी जी आपने यह अमृतमई वाणी  कंहाँ से प्राप्त की ? क्या यह आपके आपने अनुभव कि है”
तब साधु महापुरुष ने उतर दिया कि “हममे इतनी योग्यता कंहा,हम तो आचार्य गरीब दास जी महाराज के चरणों की धुल भी नहीं है जिनकी यह वाणी हैं”रामराय ने कहा कि “साधु जी गरीब दास जी महाराज जी कंहा रहते हैं और उनके बारे में हमे कुछ बताइये मुझे जानने की बहुत इच्छा हैं” तब साधु ने कहा कि “महाराज जी हरियाणा प्रान्त जिला रोहतक छुड़ानी धाम में रहते है” और उस साधु ने महाराज जी की अनेको लीलाये रामराय जी को बताईयह सब सुनकर रामराय जी का मन महाराज जी के दर्शन करने की तरफ खींचने लगा रामराय ने पूछा कि “क्या महाराज जी मुझे भी अपनी शरण में ले लेंगे” तो साधु ने उतर दिया कि “क्यों नहीं वह पतित से पतित का भी उदहार करते है जो एक बार उनकी शरण में जाता है उसका निश्चित ही उद्धार हो जाता हैं वह इस मोह-माया को त्याग देता हैं उसको जन्म-मरण के चकर से छुटकारा मिल जाता हैं” रामराय ने अच्छी तरह से श्री छुड़ानी धाम का रास्ता पुछा और उसी दिन घर वालो से विदा लेकर वह छुड़ानी धाम को चल दिया

थोड़े ही दिनों में वह पैदल चलकर श्री.छुड़ानी धाम में पहुँच गयाछुड़ानी धाम में आकर वह पूछने लगा कि “गरीब दास जी महाराज कंहा है” तब सेवको ने कंहा कि “महाराज जी तो घुमने गए हुए हैं आप बैठिये अभी आते ही होंगे” पर रामराय जी को तो महराज जी के दर्शनों की प्रबल इच्छा थी उनसे तो एक पल भी नही रुका जा रहा थारामराय ने सेवको को कहा कि “आप मुझे बता दिजिये की महाराज जी किस तरफ गए है मै वंही जाकर महाराज जी के दर्शन कर लूँगा”सेवको ने बार-२ उनसे विनती कि “की आप काफी दूर से चलकर आये है थोड़ा आराम कर लीजिये” पर रामराय जी ने उनकी एक बात भी न सुनी और कहा कि “अब आराम तो महाराज जी के दर्शन करके ही होगा”सेवको ने फिर रामराय जी को रास्ता बता दिया कि “आप इस रास्ते पर सीधे चले जाइये आगे एक पेड़ के नीचे संतो व सेवको के साथ बैठे हुए महाराज जी आपको मिल जायेंगे”रामराय बताये हुए रास्ते पर चल दिया कुछ ही दुरी पर महाराज जी आपने सेवको के साथ साधारण वेश-भूषा में आ रहे थे
                                 
                                                                                        गरीब दास जी महाराज के मूल-वस्त्र
                        रामराय जी ने महाराज जी से पूछा कि “गरीब दास जी महाराज कंहा मिलेंगे” (क्युकि रामराय जी ने महाराज जी को इससे पहले नहीं देखा था) तब महाराज जी ने उतर दिया कि “मेरे साथ आओ मै मिलवा देता हूँ” और उसी रास्ते से महाराज जी रामराय को वापिस लेकर आ गये महाराज जी का आसन पहले से ही ऊंचाई पर लगा हुआ था जंहा महाराज जी आकर उस पर बैठ गए और फिर सब सेवको ने गरीब दास जी महाराज को दण्डवत प्रणाम किया तो अब रामराय जी भी समझ गया था कि “यही गरीब दास जी महाराज है”आपको नमस्कार करके वह भी और सेवको के साथ बैठ गयारामराय जी मन में विचार करने लगा कि “लगता है गरीब दास जी महाराज इस ग्राम के बहुत बड़े जमींदार है और ऐसे तो मै भी बहुत बड़ा जमींदार हूँ इस प्रकार महाराज जी और मुझ मै कोई अंतर नहीं है जब मै आता हूँ तो मेरे ग्राम वाले भी खड़े हो जाते है” और इस प्रकार रामराय बहुत कुछ सोचने लगा
                                                                और फिर उसने सोचा कि “मै तो उस साधु के बहकावे मै आ गया इतनी दूर से चलकर आया आज यही रुकता हूँ, कल सुबह अपने ग्राम वापिस चला जाऊंगा”गरीब दास जी महाराज तो अंतरयामी थे महाराज जी को पता चल गया कि “रामराय के मन मे क्या चल रहा था” तो महाराज जी ने सोचा कि “यह बड़ी ही श्रद्धा के साथ यंहा आया था अत: यह निराश होकर नहीं जाना चाहिए”तभी सेवको ने महाराज जी के नहाने के लिए पानी ला कर रख दिया सभी सेवको को महाराज जी ने किसी न किसी काम से बाहर भेज दिया। अब महाराज जी और रामराय दोनों अकेले रह गये थे। फिर महाराज जी ने पास में रखी हुई चोकी पर बैठ कर स्नान किया स्नान के बाद में महाराज जी ने रामराय जी से कहा कि “चौधरी साहब हमारी ऊँगली में चोट लगी हुई है तो किरपा करके आप हमारी कोपीन (लंगोटी) की गांठ लगा दीजिये” रामराय जी ने उठ कर महाराज जी की कमर में कोपीन की गांठ देकर ज्यूँ ही जोर से खिंचा तो गाँठ में महाराज जी का शरीर तो आया नहीं परन्तु कपड़े की ही गांठ दोनों हाथो में पड़ी हुई दिखाई दी। क्युकि महाराज जी का शरीर तो तेजपुंज का था न की हाड़-चाम का। रामराय ने फिर कोशिश की पर नतीजा वही निकला रामराय परेशानी व हेरानी से सोचने लगा कि ”यह क्या हुआ” तब महाराज जी ने कहा कि “क्या बात हुई? आपसे गाँठ क्यों नहीं लग रही हैं जरा अबकी बार सावधानी से गाँठ लगाना” रामराय सोचने लगा कि “शायद मैंने शरीर को बीच में लिए बिना ही कोपीन को गाँठ दे दी होगी, अबकी बार सावधानी से गाँठ दूंगा”
                                                    दो बार रामराय जी कोपीन को गाँठ देने में विफल हो चुके थे जैसे ही रामराय जी ने तीसरी बार कोपीन की गाँठ बाँधने के लिए कपड़ा हाथ में लिया तो महाराज जी कहने लगे कि “अबकी बार पहले की तरह भूल मत जाना”रामराय जी ने अच्छी तरह से कपड़े को शरीर पर लपेटा और सोचा कि “अबकी बार तो गाँठ लग ही जाएगी” और फिर जैसे ही गाँठ मारी तो वही हुआ महाराज जी का शरीर बीच में नहीं आया अब महाराज जी ने कहा कि “क्या हुआ आप भी जमींदार हो और मै भी, हम दोनों में कोई अंतर नहीं है, फिर भी आपसे गाँठ क्यों नहीं लग रही है यह तो बहुत छोटा सा काम है” (ये बातें रामराय जी ने अपने मन में सोची थी जब वह महाराज जी से शुरु में मिला था) जब रामराय जी के मन की बातें महाराज जी ने रामराय को बताई तो रामराय समझ गया कि “महाराज जी तो अन्तर्यामी है,उन्होंने मेरे मन की बात जान ली”
                                                     रामराय जी उसी पल महाराज जी के चरणों में पड़ गया और अपनी भूल के लिए माफ़ी मांगने लगा और कहने लगा कि “आप तो अन्तर्यामी हो मै तो ठहरा एक तुछ प्राणी मै आपको न जान सका। अब मै आपकी शरण में आया हूँ अत: मेरी रक्षा कीजिये” महाराज जी अपने आसन पर विराजमान हुए और तब रामराय जी ने महाराज जी के चरणों में विनती कि “हे तारनहार, जीवो का उदहार करने वाले, जन्म मरण के बंधन से छुटने वाले आपको मेरा नमस्कार हैआप मुझे उपदेश दीजिये जिससे मेरा जीवन सफल हो सके”तब महाराज जी ने रामराय जी को उपदेश देकर उनका जीवन सफल बनाया महाराज जी का उपदेश जो की रामराय जी को दिया था वह श्री.ग्रन्थ साहिब में संषिप्त में है “अथ झूंमकरे” का अंग महाराज जी इसमे कहते है कि “सुनो राय झूंमकरा” जिसका मतलब है कि महाराज जी रामराय को समझा रहे है:
नाभि कँवल में पैठिये राइ झूंमकरा
                                           चल बंक नाल के घाट सुनो राइ झूंमकरा ।।
इला पिंगला फेरियो राइ झूंमकरा
                                           उतरो औघट घाट सुनो राइ झूंमकरा ।।
सुष्मणा सुरति लगाईये राइ झूंमकरा
                                           खोल्हो बज्र कपाट सुनो राइ झूंमकरा ।।
काया नगरी जदि बसें  राइ झूंमकरा
                                           जदि घर आवें आठ सुनो राइ झूंमकरा ।।
द्वादश बंध लगाईये राइ झूंमकरा
                                                   नक सरवर पर ध्यान सुनो राइ झूंमकरा ।।
संख पदम उजियार हैं राइ झूंमकरा
                           जहां कोटि कला शशि भानु सुनो राइ झूंमकरा ।।
जहां दौंना मरुवा फूल है राइ झूंमकरा
                            अक्षयव्रक्ष अस्थान सुनो राइ झूंमकरा ।।
राइ चंबेली केवड़ा राइ झूंमकरा
                         सूरज मुखी सुभान सुनो राइ झूंमकरा ।।
सुरति निरति दो हंसनी राइ झूंमकरा
                            मानसरोवर न्हांही सुनो राइ झूंमकरा ।।
मन हंसा तिस बीच है राइ झूंमकरा
                            बिन मुख मोती खांही सुनो राइ झूंमकरा ।।
                                              
।। सतपुरुष कबीर दास जी महाराज की जय ।।
।। आचार्य श्री.श्री.१००८ गरीब दास जी महाराज की जय ।।
।। सतगुरु भूरीवाले जी महाराज की जय ।।
।। श्री छुड़ानी धाम की जय ।।






3 comments:

  1. Really nice post...

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  2. Sat Sahib. Jai Bandishod. Kaushik ji Acharya Shri Garib Das ji ka Jivan ki ghatnaoun ka varnan karne ke liye dhanyavad. App se aur blogs ki apeksha hai.

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  3. Sat Sahib. Bani ke bhed kholne ke liye dhanyavad. Post kafi achi lagi. Asha hai ki aap age bhi aisi posts likhte rahenge.

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