[यह लेख सन २००२ में प्रकाशित गरिब दासी पंथ की प्रमुख त्रेमासिक पत्रिका जगद्गगुरु श्री गरिबदासाचार्य जी कल्याणकारी उपदेश से लिया गया है जो की गरीबदासीय शिरोमणि ट्रस्ट ,छतरी साहिब,छुडानी धाम ,जिला झज्जर (हरियाणा )द्वारा संचालित की गई है ]
Monday, April 25, 2011
Sunday, April 17, 2011
मन ही बंधन और मोक्ष का कारण
मन एव मनुष्याणां कारणं बन्धमोक्षयोः ।
मन ही मनुष्य के बंधन और मोक्ष का कारण है । जब मन संसारिक विषयों में डुबा (आसक्त) होता है तो बंधन का कारण होता है और विषयों से रिहत होने पर मुक्ति दिलाता है । मन को विषयों से रिहत करने के लिए इसे जितना पडता है । जिस ने मन को जीत लिया उसने सारा जग जीत लिया। लेकीन इस मन को जीतना बडा ही मुश्कील काम है। यह मन बहुत ही चंचल और बलवान है । एक क्षण में यहां है तो दुसरे ही क्षण विश्व के दुसरे कोने में पहुंच जाता है । गीता में अर्जुन भगवान श्री कृष्ण से कहते हैं की
मन ही मनुष्य के बंधन और मोक्ष का कारण है । जब मन संसारिक विषयों में डुबा (आसक्त) होता है तो बंधन का कारण होता है और विषयों से रिहत होने पर मुक्ति दिलाता है । मन को विषयों से रिहत करने के लिए इसे जितना पडता है । जिस ने मन को जीत लिया उसने सारा जग जीत लिया। लेकीन इस मन को जीतना बडा ही मुश्कील काम है। यह मन बहुत ही चंचल और बलवान है । एक क्षण में यहां है तो दुसरे ही क्षण विश्व के दुसरे कोने में पहुंच जाता है । गीता में अर्जुन भगवान श्री कृष्ण से कहते हैं की
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