Friday, March 5, 2010

भूरी को बुखार

एक समय की बात है सतगुरु ब्रह्म सागर जी महाराज भुरिवाले लुधियाना की कुटिया में आये हुए थे मुख्यद्वार के साथ कुटिया में महाराज जी का आसन लगा हुआ था एक दिन की बात है की महाराज जी को बहुत जोर का भुखार हो रहा था

महाराज सुबह से ही भूरी ओढ़े अपने कमरे में लेटे हुए थे कुछ खाया पिया भी नहीं था दोपहर को कही से चार संत आये और दीवान जी से पूछा की महाराज जी कहा है ? दीवान जी ने कहा की महाराज जी को बहुत जोर का बुखार हो रहा है संतो ने महाराज जी से मिलने की इछा परगट की दीवान जी महाराज जी के गए और कहा की हे गुरुदेव ! चार महात्मा आप से मिलना चाहते है महाराज जी ने महात्माओ को जल पान करवाने का आदेश दिया और बाद में मिलने को कह दिया

साधुओ को दूध आदि पीलाकर दीवान जी साधुओ को महाराज जी के पास ले गए पहले तो महाराज भूरी ले कर लेटे हुए थे ,परन्तु संतो के आने से पहले उठ कर बैठ गए और भूरी को उतार कर एक तरफ रख दिया महाराज जी की संतो के साथ सत्संग वार्तालाप होने लगी , दूसरी तरफ उतार कर राखी हुई भूरी कांप रही थी ऐसा मालूम पड़ रहा था की उसके अंदर कोई हरकत कर रहा है महाराज जी मस्ती मैं संतो से बात कर रहे थे परन्तु संतो का ध्यान महाराज जी की बातो में न था बल्कि हिल रही भूरी की तरफ था

वे आश्चर्य चकित हो कर देख रहे थे की यह निर्जीव पदार्थ सजीव प्राणियों की तरह कैसे हरकत कर रहा है आखिर संतो से रहा न गया और बीच में ही बोल पड़े महाराज जी हम आप के प्रवचन तो सुन रहे है परन्तु हमारा ध्यान बरबस भूरी की तरफ आकर्षित हो रहा है की इस के अंदर कौन है ? महाराज जी बोले की भूरी के अंदर भुखार है बुखार हमें हो रहा था परन्तु आप लोगो के साथ बातचीत करने के लिए कुछ समय के लिए बुखार भूरी को दे रखा है जब आप चले जाएगे तो बुखार पुन: हम ले लेंगे
संतो ने कहा महाराज जी भूरी के बुखार को हम लोगो में समक्ष ग्रहण कर दिखाओ महाराज जी ने उठाकर भूरी ओढ़ ली और बुखार से शारीर कापने लगा संत इस आश्चर्य पूर्ण चमत्कार को देखकर कहने लगे हे नाथ ! आज भी इस कलयुग में ऐसे-ऐसे सिद्ध संत है जो प्रकृति को भी अपनी आज्ञा से संचालित करते है धन्य है ऐसे महापुरश जिन की तपस्या और पुन्यपद प्रभाव से आज भी इस आर्यव्रत देश का मस्तक ऊँचा है

नोट : पंजाबी में भूरी चद्दर या कम्बली को कहते है जो शारीर पर ओढ़ी जाती है

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